संजीव कुमार भटनागर
दिवस दूसरा पूजिए, ब्रह्मचारिणी रूप|
मिश्री माँ मन भोग है, उत्तम और अनूप||
ब्रह्मचारिणी रूप की, लीला अद्भुत जान|
ब्रह्मा विष्णु महेश भी, करते खूब बखान||
श्वेत वस्त्र माँ धारिणी, गौर वर्णिका रूप|
संयम आभा को लिए, शंकर चाह अनूप||
महादेव पति रूप हों, तपस्या का विचार|
निराहार निर्जल करे, माँ तप बरस हज़ार||
ब्रह्मचारिणी मात को, पूजे है संसार|
शिक्षा विवेक मात दे, मिलता ज्ञान अपार||
तप की माँ प्रतिमूर्ति है, ब्रह्मचारिणी नाम|
हाथ कमंडल आपके, माला जपना काम||
उर में महेश धर लिए, किया कठिन उपवास|
अगम तपस्या से मिला, शिव हृदय में निवास||
वैरागी तप त्याग है, भव्य मात का रूप|
तपश्चारिणी ज्ञान से, होता जग अनुरूप||