July 27, 2024

संवाददाता।
कानपुर।
नगर में मंगलौर से आए मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ सुखेश राव ने एक पत्रकार वार्ता में इंसानो को लगातार आने वाली छींक से होने वाली बीमारी के बारे में जानकारी दी। डॉ सुखेश राव ने बताया कि आज के समय मे दस में से दो व्यक्ति इस तरह की आने वाली छींक से पीड़ित है। यह छींके आमतौर पर कुछ व्यक्ति को आने लगती है। इसमें बार-बार छींक आने से जब रोगी परेशान हो जाता है, तो एलर्जी होने के भ्रम पर दवा खाकर इसे भूल जाता है। लेकिन इस तरह की एलर्जी जिसमें रोगी को लगातार छींक आये, धूल से एलर्जी होना, कोल्ड एलर्जी होना और एलर्जिक दमा होने की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह के मरीज इसलिए तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसमें सबसे अधिक लोगों की जीवन शैली का असर होता है। समय से खानपान समय से सोना और जगाना एलर्जी का मुख्य कारण बन जाता है। ग्लोबल वार्मिंग और लगातार हो रहे निर्माण की वजह से धूल गर्दा प्रदूषण इस तरह की एलर्जी के मुख्य कारण है। उन्होंने बताया कि इस तरह की एलर्जी जिन लोगों को होती है उन्हें मेडिकल भाषा में हाइपरसेंसटिविटी पर्सन कहा जाता है। ये व्यक्ति बहुत ही नाजुक होते है। इन लोगों के आसपास यदि कही भी धूल गर्दा होती है तो इन्हें छींक आना शुरू हो जाती है। लेकिन लगातार एलर्जी बनी रहने से भविष्य में छींक आने की एलर्जी दमा बीमारी का कारण बन जाती है। डॉ सुखेश राव ने बताया कि इस तरह की एलर्जी से बचने के लिए सबसे पहले हाइपरसेंसटिविटी वाले व्यक्तियों को एलर्जी वाली जगह जैसे धूल गर्दा वाली जगह पर जाने से बचना चाहिए। इसके साथ ही अपने जीवन शैली को व्यवस्थित रखने चाहिए जिसमें क्या खाना है कैसे और कब खाना है, शरीर को कितना आराम देना है ,इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। इससे ही आराम मिल सकता है और इससे बचा जा सकता है।डॉ सुखेश राव ने बताया कि इस तरह की छींक बार-बार आने पर मरीज का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि छींक आना एक आम प्रक्रिया है। और यह ही बात समझकर कुछ लोग एलर्जी के नाम पर मेडिकल स्टोर से कोई भी दवा ले लेते है। और कुछ दिनों के लिए ये छींक आना बंद हो जाती है। लेकिन बार-बार इस तरह से एलर्जी होना भविष्य में दमे की बीमारी बना देता है। ऐसे में मरीज की बढ़ती उम्र के साथ उसे ज्यादा दिक्कत होने लगते हैं। इसलिए समय पर इसके लिए इम्यूनोथेरेपी लेना आवश्यक हो जाता है। उन्होंने बताया कि इम्यूनोथेरेपी जिन मरीजो को लगातार छींके आ रही है उनके लिए वरदान साबित होती है। इम्यूनोथेरेपी उन मरीजो को दी जाती है जिन्हें लंबे समय से बार बार छींके आ रही होती है, और उनके लिए एलर्जी घातक साबित हो रही हो। ऐसे में इम्यूनोथेरेपी वैक्सीन के माध्यम से मरीज को दी जाती है। उन्होंने बताया कि इम्यूनोथेरेपी अभी तक दिल्ली, मुंबई ,हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों में की जाती है। कानपुर में अगर इस तरह के मरीज अब तक होते थे, तो उनके लिए वैक्सीन इन्हीं शहरों से मंगाई जाती थी। लेकिन कानपुर में अब नगर के नौबस्ता स्थित एक अस्पताल में इम्यूनोथेरेपी से एलर्जी का इलाज किया जाना शुरू किया जाएगा। इसमें मरीज की सबसे पहले एलर्जी से होने वाली ब्लड से जांचें कराई जाती हैं। इसके बाद वैक्सीन थेरेपी दी जाती है। इसी प्रक्रिया को ही इम्यूनोथेरेपी कहते हैं। नगर के जीएसवीएम मेडिकल से ही डॉ सुखेश राव ने एमडी किया था। इसके बाद वह मणिपाल में पढ़ाने के लिए चले गए ,जहां वह असिस्टेंट प्रोफेसर रहे। मैंगलोर में ही एक मेडिकल कॉलेज में भी वह प्रोफेसर रहे। वर्तमान में मैंगलोर के श्रीनिवास मेडिकल कॉलेज में 8 साल से वह प्रोफेसर हैं। 

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