— 9 वीं शताब्दी में निर्मित मन्दिर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने दूर-दूर से आते भक्त
कानपुर। घाटमपुर के भोगनीपुर-चौड़गरा मार्ग पर निबियाखेड़ा गांव में चन्देल वंश के राजाओं का बनवाया गया भद्रेश्वर महादेव मंदिर आज भी शिवभक्तों की भक्ति का केन्द्र माना जाता है। यह मंदिर अपने ऐतिहासिक महत्व और प्राचीनता के लिए दूर-दूर तक अपनी प्रसिद्धि बिखेरे हुए है। प्राचीन ईंटों से बने इस मंदिर में विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनी हुई हैं, जो लोगों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं। पुरातत्व विभाग से संरक्षित भद्रेश्वर महादेव मंदिर में सावन के महीने में दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। घाटमपुर तहसील क्षेत्र के निबियाखेड़ा गांव स्थित भद्रेश्वर महादेव मंदिर की चारों दिशाओं में चार छोटे मंदिर बने है। बुजुर्ग बताते हैं कि इस मदिर का निर्माण 9वीं से 10वीं शताब्दी के बीच हुआ था। कहा जाता है कि प्राचीन ईंटों से निर्मित इस मंदिर का निर्माण चंदेल राजाओं ने करवाया था। यहां पर मंदिर के ललाट बिंब पर गज लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित है। इससे यह भी अनुमान लगाया जाता है कि पहले यह एक वैष्णव मंदिर था। बाद में इसे शिव मंदिर में परिवर्तित कर दिया गया। मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग बलुई रंग का है। मंदिर के चारों दिशाओं में चार छोटे मंदिर स्थापित हैं। इनमें भगवान शिव की प्रतिमाएं स्थापित हैं।इससे इस मंदिर का दृश्य अलग दिखाई देने लगता है। सावन के महीने में दूर-दूर से भक्त बाबा के दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं। यहां पर सुबह से ही भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी है। भद्रेश्वर महादेव मंदिर पंचायतन शैली का है। इसमें चारों कोनों पर छोटे मंदिर स्थापित हैं। ईंटों से बने इस मंदिर की गर्भगृह अंदर से गोलाकार और बाहर से कोनों के आकार का बना हुआ है। मंदिर के मुख्य द्वार के चौखट पर गंगा और यमुना की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रचीन मंदिर के बाहरी भाग में कई ईटों से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनी हुई हैं।