November 25, 2024

आचार्य श्री विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ का भव्य शुभारंभ

कानपुर । छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत आचार्य श्री विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ का शुभारंभ वीरांगना लक्ष्मीबाई सभागार में किया गया। दो सत्रों में कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि असीम अरुण जी (समाज कल्याण मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार), विशिष्ट अतिथि – प्रो0 मणींद्र अग्रवाल , निदेशक, आईआईटी कानपुर, अध्यक्षता कुलपति माननीय प्रो0 विनय कुमार पाठक , प्रति कुलपति प्रो0 सुधीर अवस्थी, कुलसचिव डा0 अनिल यादव, डॉक्टर राजतिलक, प्रदीप जैन, सुधींद्र जैन, अरविंद जैन, राकेश जैन, राजीव जैन की उपस्थिति रही। मंगलाचरण वीरेन्द्र जैन शास्त्री हीरापुर, राहुल जैन शास्त्री द्वारा किया गया। 

माननीय कुलपति महोदय ने कहा जैन दर्शन पर अधिक से अधिक शोध होना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार आहार-चर्या का डायबिटीस पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, इस पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

प्रो0 मणींद्र अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत का प्राचीन साहित्य जिसे जैन दर्शन में आगम कहा गया है, वह पांडु लिपियों के रुप में इधर-उधर विखरा पड़ा है, यह पीठ उसको एकत्र कर ओसिआर टेक्नांलॉजी के माध्यम से संरक्षित करने का काम करेगी तथा, आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर इन प्राचीन साहित्यों के आपसी सम्बन्धों को ए.आई. टेक्नोलॉजी के माध्यम से स्थापित करने का कार्य करेगी जोकि भविष्य के शोध के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। 

 असीम अरुण ने कहा विश्व गुरु बनने से पहले हम विश्व शिष्य बने। हम अपनी रिसर्च की जबरजस्त मार्केटिंग भी करें, जिससे हम इस रिसर्च को जन-जन तक भेज सकें। उन्होंने कहा कि जैन धर्म हमें त्याग और तपस्या का रास्ता दिखाता है।

द्वितीय सत्र में सभापति प्रो फूलचंद जैन प्रेमी वाराणसी, अतिथि वक्ता – डॉ श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत (अध्यक्ष, अ भा. दि. जैन शास्त्री परिषद) ने जैन सिद्धांत वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक प्रासंगिक पर अपना वक्तव्य दिया, और जैन पीठ के कार्यों को योजना पर भी मार्गदर्शन दिया। 

अतिथि वक्ता डॉ0 आशीष जैन आचार्य शाहगढ़ (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त) ने जैन आगम की प्रमुख भाषा प्राकृत के विस्तार एवं शोध की आवश्यकता पर अपना व्याख्यान दिया। प्राकृत भाषा जन-जन की भाषा है, इसमें मधुरता है। प्राकृत भाषा में रचित जैन साहित्य के संग्रह की महती आवश्यकता है तथा इसके हिन्दी अनुवाद की भी व्यवस्था तकनीकी के माध्यम से की जानी चाहिए।

तत्पश्चात  पवन जैन दीवान ने सभी का परिचय दिया और जैन पीठ समिति द्वारा सभी आगंतुक विद्वानों का सम्मान किया गया। डॉ0 अंगद सिंह द्वारा शोध कार्यों की आवश्यकता पर महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया। सभापति प्रो0 फूलचंद जैन द्वारा जैन पीठ को विधिवत संचालन के लिए अनेक सुझाव प्रदान किए। जैन पीठ के अध्यक्ष सुमित जैन शास्त्री कानपुर ने मंच संचालन किया। आभार प्रदर्शन वीरेन्द्र जैन शास्त्री द्वारा किया गया।

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