—बेशकीमती जमीन पर दस साल से नहीं हुई कार्रवाई
कानपुर। साल 2014 में तत्कालीन जिलाधिकारी रोशन जैकब की रिपोर्ट के बाद से ठन्डे बस्ते में पडा सिविल लाइन स्थित नजूल वाली जमीन का मामला एक बार फिर से गर्म हो चला है। नजूल की करीब 1 हजार करोड़ रुपए की जमीन पर 10 सालों से कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है। इस दौरान नगर के लगभग 7 जिलाधिकारियों का तबादला हो चुका हैअब जब मामले में हंगामा के बाद, बवाल हुआ, तब प्रशासन नींद से जाग गया है।प्रशासन ने 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर जांच के आदेश के दे दिए है। दस सालों पूर्व मामले में शासन को आखिरी रिपोर्ट 23 सितंबर 2014 को तत्कालीन जिलाधिकारी रोशन जैकब ने दी थी। इसके बाद ये पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। रोशन जैकब के बाद जिले में 7 जिलाधिकारी बदल गए, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर जांच में जहां की तहां पड़ी रही। इस पर किसी भी जिलाधिकारी ने संज्ञान नहीं लिया। रोशन जैकब के बाद जिले में कौशल राज शर्मा, सुरेंद्र सिंह, ब्रह्मदेव राम तिवारी, आलोक तिवारी, विजय विश्वास पंत, विशाख जी अय्यर, नेहा शर्मा, विशाख जी के बाद, अब राकेश कुमार सिंह के पास चार्ज है।2012 में नजूल की जमीन की लीज खत्म हुई। लेकिन तीन लोगों ने दावेदारी की। फिर इसकी खरीद फरोख्त को लेकर विवाद हुआ। डीएम राकेश कुमार सिंह के मुताबिक- इस जमीन को 12 साल पहले ही राज्य सरकार में निहित हो जाना चाहिए था। रिपोर्ट के मुताबिक मामले में दोनों पक्षों को सुना गया था और दोनों ने ही अपने-अपने पक्ष में साक्ष्य उपलब्ध कराए थे। 12 सितंबर 2014 को प्रथम पक्ष से किरन सैमुअल, एना लॉरेंज, एस्तर अमन और एनजीओ कॉर्डिनेटर नीरू सिंह ने अपने बयान दर्ज कराए थे। इसके अलावा दूसरे पक्ष की तरफ से पादरी मौरिसन मसीह और कमला एरियर पेश हुई थीं और जिलाधिकारी के सामने अपना पक्ष रखा था। रिपोर्ट के मुताबिक- दोनों पक्षों को सुनने के बाद साक्ष्यों के आधार पर भूखंड संख्या 69, 69 ए और 69 बी को नजूल की संपत्ति ही माना गया और किसी को भी लीज न होने की बात कही गई। मामले में 17 अक्टूबर 2010 को भी एसडीएम सदर ने नजूल की संपत्ति होने की बात जांच के बाद कही थी और किसी भी विक्रय न किये जाने की संस्तुति की थी। जिलाधिकारी ने डीआईओएस को स्कूल में बतौर प्रशासक तैनात किया था। क्योंकि उस वक्त स्कूल मेरी एंड मेरी में करीब 39 बच्चे पढ़ते थे और 13 टीचर पढ़ाते थे। इनकी सैलरी से लेकर स्कूल की पूरी देखरेख की जिम्मेदारी डीआईओएस को ही दी गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक फ्री होल्ड नहीं की गई सिविल लाइंस स्थित नजूल की जमीन पर की गईं रजिस्ट्रियां व इकरारनामा पूरी तरह से अवैध है। नजूल की जमीन का कोई फ्री होल्ड नहीं किया गया। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सौम्या अग्रवाल के बाद पूर्व डीएम डॉ. रोशन जैकब ने जांच कर शासन को रिपोर्ट सितंबर 2014 को भेजी थी। उस वक्त तत्कालीन डीएम ने किसी भी तरह की रजिस्ट्री व अन्य खरीद फरोख्त पर रोक लगाते हुए रजिस्ट्री विभाग और राजस्व परिषद को भी पत्र भेजा था। सरकार कई वर्ष से शहर में स्थित ब्रिटिश इंडिया कारपोरेशन (बीआईसी) और नेशनल टेक्सटाइल कारपोरेशन (एनटीसी) मिलों की संपत्तियों को बेचने की तैयारी कर रही है। लेकिन सरकार के लिए संपत्तियों को बेच पाना इतना आसान नहीं हो पा रहा। एक ओर बीआइसी की संपत्तियों पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर सीबीआई की नजर है।वहीं एनटीसी की लक्ष्मी रतन कॉटन मिल के एक बड़े भूभाग पर कई लोगों का कब्जा है। लीज समाप्त होने के बाद ये संपत्तियां नजूल की हो चुकी हैं। लेकिन जिला प्रशासन के पास दोनों कारपोरेशन की जमीनों पर कहां पर लोगों का कब्जा है इसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। लीज समाप्त होने के बाद एनटीसी की पांचों मिलों की जमीन बेचने की कवायद सालों पहले शुरू की गई थी। औद्योगिक जमीन को आवासीय और व्यावसायिक भू-प्रयोग में बदलने के लिए केडीए (कानपुर विकास प्राधिकरण) ने खाका भी बना लिया था, लेकिन प्रशासन की ये कवायद सफल नहीं हो सकी। एनटीसी की लक्ष्मी रतन कॉटन, अर्थटन, न्यू विक्टोरिया, स्वदेशी कॉटन और म्योर मिल को मशीनरी व मलवा बेचकर मैदान किया जा चुका है। भू-प्रयोग बदले बिना 10 साल पहले एनटीसी अफसरों ने जूही स्थित स्वदेशी मिल की जमीन बेचने का प्रयास किया था, लेकिन केडीए ने रोक लगा दी थी।इसके एक साल बाद केडीए ने पांचों मिलों की भू-प्रयोग परिवर्तन की रिपोर्ट तैयार की। जिसमें पांचों मिलों का क्षेत्रफल लगभग 164 एकड़ है। तब इस जमीन की कीमत जिलाधिकारी के सर्किल रेट से 1070.37 करोड़ रुपए आंकी गई थी। जमीनों को फ्री होल्ड कराने के लिए एनटीसी को केडीए को करीब 500 करोड़ रुपए शुल्क देना पड़ा। हालांकि सूत्रों के मुताबिक विक्टोरिया व म्योर मिल में 35 एकड़, स्वदेशी कॉटन मिल में 60 एकड़, लक्ष्मी रतन कॉटन मिल में 76 एकड़ और अर्थटन मिल में 12 एकड़ जमीन है। लक्ष्मी रतन कॉटन मिल की करीब 63 एकड़ जमीन पर कई लोगों को अवैध कब्जे हैं। इस जमीन को खाली कराना भी प्रशासन के लिए चुनौती से कम नहीं होगा