कानपुर। सावन माह के दूसरे सोमवार को शहर के जागेश्वर,वनखण्डेश्वर, खेरेश्वर,सिद्धनाथ ,नागेश्वर धाम सहित शिव मंदिर में काफी श्रद्धालु की भीड़ उमड पडी। नगर के अन्य शिवालयों में लोग पूजा अर्चना के लिए पहुंचे। मंदिरों में पार्थिव पूजा, महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक किया। इस दौरान भक्तों ने भगवान शिव का जलाभिषेक कर सुख-समृद्धि की कामना की। इसके अलावा घरों और मंदिरों में पार्थिव पूजन का आयोजन किया गया।सोमवार को भोलेबाबा के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। भक्त देर रात से ही लाइन में लगना शुरू हो गए और भोर पहर पट खुलते ही बाबा के दर्शन किए। इस दौरान भक्तों ने गंगा स्नान भी किया। सुरक्षा के लिहाज से पुलिस-प्रशासन चप्पे-चप्पे पर मुस्तैद रहा। साथ ही गंगा तटों पर भी गोताखोर भी तैनात रहे। सावन के दूसरे सोमवार को गंगा घाटों पर भोर से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी पड़ी। भक्तों ने गंगा में डुबकी लगाने के बाद भगवान शंकर का जलाभिषेक कर उनका श्रृंगार किया। इसके बाद अपने मंगल जीवन की कामना की। मंदिरों में सुबह 4 बजे मंगला आरती की गई, इसके बाद भक्तों के दर्शन के लिए पट खोले गए। परमट मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर के पट रात को दो बजे ही भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए थे। कानपुर के परमट मंदिर, जागेश्वर मंदिर, खेरेश्वर मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर में देर रात से ही भक्तों की लाइन लगनी शुरू हो गई थी। मंदिर में आरती के पश्चात जैसे ही पट खुले तो पूरा परिसर हर-हर गंगे, बम-बम भोले, ओम नम: शिवाय के जयघोष से गूंज उठा। भगवान को प्रसन्न करने के लिए किसी ने गंगाजल से अभिषेक कराया तो किसी ने कच्चे दूध से अभिषेक किया। परमट मंदिर में सुबह होते-होते हजारों की संख्या में भीड़ पहुंच गई। जल्दी दर्शन करने की होड़ में भक्तों के बीच धक्का मुक्की भी देखने को मिली। इसके लिए पुलिस को बीच में आना पड़ा। इसी तरह का नजारा सिद्धनाथ मंदिर में भी देखने को मिला। मंदिर के गर्भ गुफा के बाहर दर्शन करने वालों की भारी भीड़ लगी था।गंगा घाटों पर पुलिस नाव से गोताखोरे के साथ धूमती रही। सिद्धनाथ मंदिर को छोटा काशी के नाम से भी पुकारा जाता है। ऐसी ही भीड़ ब्रह्मावर्त घाट, खेरेश्वर मंदिर, जागेश्वर मंदिर, वनखंडेश्वर मंदिर आदि शिवालयों में देखने को मिली।भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए भक्तों ने उन्हें तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल अर्पित किए। सबसे पहले भगवान का जल से अभिषेक किया गया। इसके बाद इत्र लगाया, फिर लाल-पिला चंदन लगाया। फल, मिठाई और ठंडाई का भोग लगाया गया।