कानपुर। शासन ने जेके केंसर के उत्थान के लिए करोड़ों का बजट दिया उपमुख्यमंत्री ने स्वयं कई बार दौरा किया और नई संसाधन इलाज के लिए उपलब्ध भी कराये लेकिन रायबरेली से अपनी बहन का इलाज कराने आए तीमारदार को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। तीमारदार का आरोप है कि कानपुर मेडिकल कॉलेज से रेफर करने के बाद जब जेके कैंसर हॉस्पिटल पहुंचे तो वहां के डॉक्टरों ने कहा कि बिना पैसे के जांच नहीं होती है, जब पैसा नहीं है तो क्यों लेकर यहां आए। इसके बाद मरीज को बाहर की जांच लिखकर भेज दिया। तीमारदार अपने मरीज को लेकर पिछले तीन दिनों से अस्पताल के चक्कर काट रहा है और सड़क पर रात गुजारने को मजबूर है।
शनिवार को कानपुर मेडिकल कॉलेज में किया था भर्ती
रायबरेली निवासी मोहम्मद मुफीद खान ने बताया कि वह अपनी बहन अफसाना को पेट में दर्द और सूजन की समस्या लेकर बीते शनिवार को कानपुर मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल की इमरजेंसी में लाए थे। यहां पर डॉक्टरों ने मरीज की हालत गंभीर देखते हुए उसे तत्काल भर्ती कर लिया था। डॉ. कुश के अंडर में दो दिन तक मरीज को भर्ती रखा। इसके बाद जब मरीज की हालत स्थिर हुई तो उन्होंने सोमवार को जेके कैंसर अस्पताल के लिए रेफर कर दिया, जब यहां पर पहुंचे तो डॉक्टरों ने जांच कराने को कहा, लेकिन जेब में पैसा ना होने के कारण असमर्थता जताई तो उन्होंने वहां से बाहर भगा दिया और कहा कि पहले जांच कराकर आओ इसके बाद आना। तीमारदार का आरोप है कि डॉक्टरों ने कहा कि बिना पैसे के कोई जांच नहीं होती है, जब पैसा नहीं था तो मरीज को लेकर ही क्यों आए।
पूरी रात काटी सड़क पर
मोहम्मद मुफीद ने कहा कि रात अधिक हो जाने के कारण कहा जाते कुछ समझ नहीं आ रहा था। जेब में पैसा भी नहीं था कि किसी होटल में रुक जाते। इसलिए पूरी रात मोतीझील के पार्क पर काटी। इसके बाद सुबह मुफीद अपनी गुहार लगाने हैलट के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरके सिंह के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई।
हैलट के डॉ. आरके सिंह ने मरीज की समस्या को सुना, इसके बाद तुरंत संबंधित डॉक्टर को भर्ती करने का आदेश दिया। डॉ. सिंह ने कहा कि जो भी जांच लिखी गई है वह सब अस्पताल के अंदर कराई जाए। इसके बाद मरीज को जेके कैंसर अस्पताल के डॉक्टर से संपर्क करने के बाद ही अस्पताल से रेफर किया जाए।
डायरेक्टर ने कहा मेरे संज्ञान में नहीं है मामला