December 3, 2024

कानपुर। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से ठीक एक दिन पूर्व शनिवार को उनके बड़े भाई बलराम का जन्मदिन हलषष्ठी या ललही छठ के रूप में मनाया गया। पुत्रवती महिलाओं ने अपने पुत्र की दीर्घायु व आरोग्य की कामना से व्रत रहकर हलधर की पूजा-अर्चना की। सुबह महुए की डाल से दातून करने के बाद स्नानादि से निवृत्त होकर उन्होंने परंपरागत पूजा स्थलों पर जाकर कुश व बरियारा की पूजा की। उन्होंने भगवान बलराम के हथियार हल की भी महुआ, नमक, तिन्नी का चावल, हल्दी, भैंस के दूध की दही, द्रव्य आदि से पूजा की। अपने पुत्रों के माथे पर तिलक लगाकर उनके मंगल की कामना की। इसके साथ ही हल से जोते गए खेत में पैदा हुई कोई भी चीज खाने से परहेज किया। तिन्नी का चावल व बिना जोते हुए उपजे साग को ग्रहण कर अपना व्रत पूरा किया। ऐसी मान्यता है कि इससे उनके पुत्र आरोग्य होने के साथ ही दीर्घायु भी होते हैं।संतान की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए महिलाओं ने शनिवार को हलषष्ठी का व्रत रखा। हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लीं। इसके बाद घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाया। फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की।कई जगह महिलाओं ने घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाए और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना की। हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। हलषष्ठी के दिन संतान की प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। नवविवाहित स्त्रियां भी संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। बलराम जयंती होने के कारण बलराम व भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन खेती में उपयोग होने वाले उपकरणों की पूजा भी की जाती है।ऐसी मान्यता है कि षष्ठी देवी और भगवान बलराम की पूजा करने से व्रती के पुत्रों की आयु में वृद्धि होती है और वे स्वस्थ व निरोगी रहते हैं।

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