
संवाददाता
कानपुर। बेहद दर्दनाक अग्निकांड के 5 जिंदगियां निगल जाने के 72 घंटे के बाद चमनगंज स्थित उस बिल्डिंग के आसपास गमगीन माहौल दिखाई दे रहा है। सड़क पर अंधेरा, तबाह हुई बिल्डिंग और आसपास खत्म हुए परिवार की बातें करते लोग दिखाई दिए। अब उस सड़क पर न ही कोई शोर शराबा दिखा, न ही उस तबाह हुई बिल्डिंग के दोनों तरफ 500 मीटर की दूरी तक किसी दुकान का शटर खुला दिखा।
बस दिखाई दिए तो बस उस बिल्डिंग को देखकर बातें करते हुए लोग और उस परिवार में जिंदगी की जंग हारने वाली नन्हीं बच्चियों के बारे में बात करके बार – बार शांत होने वाले पड़ोसी।
कानपुर के चमनगंज थाना क्षेत्र के प्रेम नगर में रविवार रात आग की भयावह घटना के 72 घंटे के बाद
दानिश की कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी रईस ने बताया कि वह 25 साल से दानिश के साथ काम कर रहा था। उसने बताया कि जीवन में कई बार ऐसा समय आया जब दानिश भाई ने मेरी मदद की। वह हमेशा किसी की भी मदद करने से पीछे नहीं हटते थे। उनके चले जाने का दुख झेल पाना मुश्किल हो रहा है। रईस ने बताया मेरी उनसे आखिरी मुलाकात शनिवार हुई थी।
दानिश के भाई काशिफ के दोस्त सोनू ने बताया कि उसका दानिश के घर आना-जाना था। क्योंकि काशिफ से उसकी पुरानी दोस्ती है। त्योहारों पर आना-जाना था। नन्हीं बच्चियों का वह चाचा – चाचा पुकारना उसे बार-बार याद आ रहा है। दानिश बहुत ही मददगार इंसान थे। अनजान लोगों की मदद करने में भी वह पीछे नहीं हटते थे। लेकिन ऐसे इंसान का इस तरह से हादसे में परिवार सहित खत्म होना, यह भूल पाना मुश्किल हो रहा है।
काशिफ ने बताया दानिश बहुत ही सरल स्वभाव के थे, जिस दिन हादसा हुआ उसी दिन शाम को 4 बजे वह अपनी बड़ी बेटी के साथ जा रहे थे। उनसे दुआ सलाम हुई थी, क्या पता था कि वह आखिरी दुआ सलाम होगी।
बगल की बिल्डिंग में ही रहने वाले रसूल ने बताया इतने साल में पूरे मोहल्ले में दानिश का किसी से भी कोई विवाद झगड़ा नहीं हुआ। उसका नेचर ऐसा था कि वह सबकी ज्यादा से ज्यादा मदद करने की सोचता था। रोजाना मुलाकात और दुआ सलाम, कुछ बातें और बस काम में लगे रहने वाला वह इंसान जब इतने बड़े हादसे में चला गया। इसके साथ ही उसका पूरा परिवार जिसमें मासूम बच्चियों भी थी, वह भी नहीं बची तो घर में हमारे बच्चों ने भी खाना तक नहीं खाया। क्योंकि बार-बार सोच कर यही लग रहा था कि यह सब आखिर कैसे हो गया। दानिश के अंदर एक खासियत थी कि वह मालिक या कर्मचारी में एक समान ही घुल मिल जाता था।
वह अपने दोस्त के साथ ईद के वक्त आस पड़ोस के लोगों को ईदी देता था। चाहे कोई कर्मचारी हो या कोई पड़ोसी हो, कभी भेद नहीं करता था।
बिल्डिंग के सामने रहने वाले मनोज गुप्ता ने बताया की दानिश सबकी मदद करते थे। यहां तक मोहल्ले और आसपास के लोग उन्ही के घर से पानी लेते थे। यहां तक जब कोई त्योहार होली या अन्य त्योहार जिसमें चंदा चाहिए होता था, तो उसमें 500 रुपए मांगने पर दानिश 1000 रुपए देता था। दानिश सबको खुश रखना चाहता था।
शकील अहमद जो एक एनजीओ में काम करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं कोई दानिश का रिश्तेदार नहीं हूं। लेकिन फिर भी यहां खड़ा हूं। क्योंकि वह ऐसे इंसान थे, जिन्हें मैं पिछले 2 साल से देख रहा था। क्योंकि मैं यहां रोटी रोल रोजाना भेजता था। क्योंकि दानिश 100 रोटी रोल रोजाना मांगते थे और अपने घर के नीचे गरीबों को बांटते थे। हमारा लड़का यहां पर रोजाना रोटी लेकर आता था और दानिश भाई उसे तुरंत ही पेमेंट कर दिया करते थे। ऐसे इंसान की इस तरह से जब मौत हुई तो यकीन नहीं हुआ कि इतनी दर्दनाक मौत आखिर उनके हिस्से में कैसे आ गई। जिसमें उनका पूरा परिवार ही खत्म हो गया।