
संवाददाता।
कानपुर। नगर में डीएम एवं केडीए उपाध्यक्ष विशाख जी से भिड़ने वाले बिल्डर विशाल गर्ग के खिलाफ स्वरूप नगर थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई है। वहीं बिल्डर की जमीन नापने का आदेश भी डीएम ने दे दिया है। अगर बिल्डर के नाम पूरे प्रदेश में निर्धारित सीमा (साढ़े बारह एकड़) से ज्यादा खेतिहर जमीन निकली तो अर्बन सीलिंग में तब्दील करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। डीएम ने यह भी आदेश दिया है कि जिस जमीन को लेकर विवाद है वहां पैमाइश कराई जाए। यह भी देखा जाए कि आखिर बिल्डर किस आधार पर सरकारी सड़क को अपनी जमीन बताकर काट रहा है। इस जमीन का पूरा सिजरा डीएम ने केडीए के ओएसडी रवि प्रताप सिंह से मांगा है। जमीन की पैमाइश के लिए केडीए के तहसीलदार के अलावा सदर तहसील की भी टीम का गठन कर दिया गया है। इसमें अमीन और लेखपाल भी शामिल हैं। केडीए के लैंड बैंक विभाग ने जो रिपोर्ट तैयार की है उसके मुताबिक जोन दो के सिर्फ पनकी गंगागंज में ही बिल्डर के नाम की 1.905 हेक्टेयर यानी 19050 वर्ग मीटर जमीन निकली है। अब इस जोन के साथ ही केडीए के सभी जोन और जिले भर की जमीनों का ब्योरा एकत्र किया जा रहा है। रूरल सीलिंग का नियम है कि प्रदेश में 12.5 एकड़ (5.05 हेक्टेयर) से ज्यादा खेतिहर जमीन किसी के पास नहीं होनी चाहिए। किसी चैरिटेबल ट्रस्ट समेत कुछ मामलों में अनुमति के बाद ज्यादा जमीन रखने की छूट है। अर्बन सीलिंग का नियम 1000 वर्ग मीटर से ज्यादा का है मगर अर्बन सीलिंग के जरिए जमीनों का अधिग्रहण लंबे समय से बंद है। बिल्डर पर जिस 45 मीटर रोड को काटे जाने की रिपोर्ट है वह जमीन पनकी गंगागंज की है। सारा विवाद छह आराजियों (अराजी नबर 981, 982, 985, 986, 987 और 988) का है। केडीए का दावा है कि वर्ष 1968 में ही वहां की जमीनों के अधिग्रहण का गजट नोटिफिकेशन हुआ था। इसके बाद काश्तकारों को मुआवजा देकर जमीन का अधिग्रहण करते हुए कब्जा लिया गया था। केडीए की मानें तो इन्हीं जमीनों में वह जमीन भी थी जिस पर बिल्डर अपना मालिकाना हक बता रहा है। केडीए का कहना है कि मूल काश्तकार ने मुआवजा लिया था। इसके बाद अगर बिल्डर ने खरीदी तो मुआवजा नहीं बनता। यह अलग बात है कि तहसील के रिकॉर्ड में जमीन बिल्डर के नाम पर दर्ज है। फिलहाल पूरा मामला कोर्ट में विचाराधीन है।