संवाददाता।
कानपुर। गुरुपर्व मोतीझील मैदान में परम्परागत रूप से विगत 16 वर्षों से मनाया जा रहा है । जिसको मनाने की शुरूआत तत्कालीन जिलाधिकारी अनिल सागर व तत्कालीन हरी झंडी दिखाकर विधि संगत तरीके से धार्मिक परम्परा का अनुसरण करते हुए श्री अकाल तख्त अमृतसर के जत्थेदार और पंज प्यारो की अगुवाई में प्रारम्भ की गई थी जो निरन्तर रूप से विगत 16 वर्षो से मोतीझील मैदान में आयोजित किया जा रहा है। इसकी तैयारी को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। श्री गुरु तेग बहादर साहिब सिक्ख धर्म के नौवें गुरु है ।जिनके समय में औरंगजेब भारत वर्ष को इस्लामिक देश बनाने का ठान लिया था। बलपूर्वक प्रजा पर एक पूजा पद्धति थोप दी थी, जो उसके आदेश का पालन नहीं करता था, उसका सिर कलम करने का आदेश पारित कर दिया था। इस पूजा पद्धति का सामना करने के प्रति हिन्दू समाज सहम गया था। इस समस्या के प्रति ब्राहम्ण कृपा राम के नेतृत्व में 500 ब्राहम्णों का जत्था गुरू जी के समक्ष हिन्दू सनातन धर्म की रक्षा की गुहार करने आनन्दपुर पहुँचा था । श्री गुरू तेग बहादर साहिब ने औरंगजेब को लल्कारा कि अभिव्यक्ति की आजादी एवं हिन्दू धार्मिक मान्यताओं पर चोट नहीं पहुंचने दी जायेगी। इस पर औरंगजेब के आदेश से श्री गुरू तेग बहादर साहिब को 347 वर्ष पूर्व गुरूद्वारा चांदनी चौक, दिल्ली में कत्ल कर दिया गया। जहां आज गुरुद्वारा सीसगंज है, जिनके फलस्वरूप गुरु जी ने साथ हजारो सिक्खों ने पवित्र मन्दिरों में बजते हुए शंखनाद एवं घंटे घड़ियाल और राम नाम की धुनि (जयकार) को बचा लिया। प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया गया कि शहर के कुछ शरारती तत्व परम्परागत मनाये जा रहे, श्री गुरू तेग बहादर साहिब की शहादत शहीद पर्व को अपनी गन्दी राजनीति का खेल खेलकर रोकना चाहते है। जिसे न केवल भारत का सिक्ख समाज अपितु हिन्दू संत समाज तथा हिन्दू जाति एवं मुस्लिम जाति विरोध करेगी। श्री गुरू तेग बहादर साहिब की शहादत के इस आयोजन में किसी भी कीमत पर व्यवधान (डिस्टब) नहीं डालने दिया जायेगा। सिख समाज के लोगों ने कहा कि तथाकथित संस्था ने पवित्र गायत्री मंत्र की आड़ में गुरू तेग बहादर साहिब के शहीदी पर्व में व्यवधान उत्पन्न करने के इरादे से उन्हीं तिथियों में मोतीझील पार्क पहले से बुक करा ली है। सम्पत्ति विभाग के बाबूओं की मिली भगत से यह कृत्य किया जा रहा है ।जो समाज में शान्ति के माहौल में व्यवधान उत्पन्न करने की बड़ी साजिश एवं पहल है। हमारा आपसे निवेदन है कि इसकी जाँच करायी जाये एवं परम्परागत तरीके से गत 16 वर्षों से आयोजित इस शहीदी पर्व को दूसरे धार्मिक आयोजनों की आड़ में जिसकी शुरूआत पहली बार करने का इरादा किया गया है, उन्हें इन तिथियों में मोतीझील मैदान न दिया जाये।