संवाददाता।
कानपुर। नगर में मेडिकल कॉलेज में अब प्री-मैच्योर बच्चों को आंखों में होने वाली समस्याओं से निजात मिल सकेगा। इसको लेकर अस्पताल में शिशुओं की स्क्रीनिंग शुरू हो गई है,जिन बच्चों में रेटिनोपैथी की दिक्कत होती थी उनको समय रहते इलाज मिलेगा। इसके लिए हैलट अस्पताल में आरओपी ग्रीन लेजर विधि से बच्चों का ऑपरेशन किया जा रहा है। अभी तक इस इलाज के लिए मरीजों को दिल्ली, मुंबई जैसे शहर जाना पड़ता था, लेकिन अब इसका इलाज कानपुर में ही संभव है। कानपुर मेडिकल कॉलेज के वरिष्ठ नेत्र रोग सर्जन डॉ. परवेज खान ने बताया, पहले इस बीमारी का पता नहीं चल पाता था। इस कारण बच्चे जन्म से ही अंधे हो जाते थे। क्यों कि इस बीमारी का इलाज बच्चे के पैदा होने से लेकर एक माह के अंदर ही करना होता है। यदि इससे ज्यादा का समय बीत गया तो फिर बच्चे की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाएगी। इसके लिए अब अस्पताल में स्क्रीनिंग शुरू हो गई है। इसके ऑपरेशन के लिए आरओपी ग्रीन लेजर मशीन भी आ गई है। डॉ. परवेज खान ने बताया कि पहले स्क्रीनिंग की सुविधा नहीं थी और यहां पर कई सालों से यह ऑपरेशन भी नहीं हो रहा था। इसके चलते ज्यादा मरीज निकल कर सामने नहीं आते थे, लेकिन बच्चों वाला एनआईसीयू अच्छा हुआ है और सुविधाएं बढ़ी है तब से बाल रोग विभाग और नेत्र रोग विभाग ने मिलकर स्क्रीनिंग का प्रोग्राम शुरू किया है। इसके चलते अब हर हफ्ते 15 से 20 मरीज निकल कर सामने आते है। उन्होंने बताया कि समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की आंखों की रोशनी जाने का खतरा ज्यादा रहता है। ऐसे बच्चों की आंखों में रेटिनोपैथी जैसी गंभीर बीमारी हो जाती है। इस बीमारी में आंखों में जाने वाली खून की कोशिकाएं गर्भावस्था के दौरान धीरे-धीरे विकसित होती हैं, लेकिन समय से पहले जन्में बच्चों में ऐसा नहीं हो पाता है और बच्चों को कम दिखाई देता है। समय से जांच होने पर इस बीमारी का इलाज संभव है। उन्होंने बताया कि खानपान, रहन-सहन सही न होना, संक्रमण, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, हाई ग्रेड फीवर आदि हाई रिस्क में शामिल गर्भवती को प्री-मैच्योर डिलीवरी की संभावना अधिक रहती है। इस हिसाब से जीएसवीएम के जच्चा-बच्चा अस्पताल में प्रतिदिन दो या चार प्री–मैच्योर डिलीवरी होती है, जिनमें से अधिकांश नवजातों का वजन डेढ़ किग्रा या इससे कम होता है। सांस लेने में तकलीफ होने पर उनको आक्सीजन की जरूरत होती है। लगातार दस दिन से अधिक आक्सीजन देने रेटिना पर गलत असर पड़ता है। डॉ. खान ने बताया कि इसका इलाज दो प्रकार से किया जाता है। एक तो सिर्फ इंजेक्शन लगाने से ही ठीक किया जा सकता है। यदि मर्ज को पहली या दूसरी स्टेज पर ही पकड़ लेते है तो, तीसरे या चौथे स्टेज पर बीमारी पहुंच गई तो इंजेक्शन के साथ-साथ लेजर विधि से ऑपरेशन किया जाता है। डॉ. खान ने बताया कि यदि किसी छोटे से छोटे निजी अस्पताल में इस ऑपरेशन कराते है तो इसमें इंजेक्शन का खर्च ही 25 हजार रुपए का आता है। ऑपरेशन का खर्च अलग रहता है, लेकिन हैलट अस्पताल में जितने भी गरीब बच्चे आते है उन्हें यह इंजेक्शन मेरी तरफ से निशुल्क लगाया जाता है। इसका कोई भी चार्ज किसी से नहीं लेते हैं।