July 27, 2024

संवाददाता। 

कानपुर। नगर में जिन मरीजों में शुगर का लेवल अधिक होता है। ऐसे मरीजों में तनाव भी बहुत होता है और यह मरीज जल्द अवसाद में चले जाते हैं। ऐसे में मरीज सबसे पहले अपने इलाज के लिए मानसिक रोग विशेषज्ञ से परामर्श लेते हैं, लेकिन ऐसे में हम अपनी शुगर के लेवल को कम कर ले तो इस समस्या का सामना कभी नहीं करना पड़ेगा। कानपुर मेडिकल कॉलेज की एक रिसर्च से यह बात सामने आई है कि जिन मरीजों में शुगर का लेवल अधिक रहता है, उन मरीजों में अवसाद, तनाव जैसी चीजें ज्यादा हैं। यह रिसर्च हाल ही में इंटरनेशनल जनरल ऑफ मेडिकल साइंस एंड करेंट रिसर्च में पब्लिश भी हुई हैं। कानपुर मेडिकल कॉलेज के मेडीसीन विभाग के प्रोफेसर डॉ. एसके गौतम ने इस रिसर्च को किया है। उन्होंने बताया कि यह रिसर्च पूरे दो सालों तक चली। इसमें 350 मरीजों पर परीक्षण किया गया। पहले इसमें उन मरीजों को रखा गया, जिनकी शुगर हमेशा हाई रहती थी। इनको तनाव भी काफी रहता था। इन मरीजों को पहले की तरह ट्रीटमेंट न करके उसमें कुछ बदलाव किया। मार्केट में शुगर की बहुत सारी दवाएं आ रही हैं। इसमें देखा गया कि किस मरीज को कौन सी दवा ज्यादा फायदा पहुंचा रही हैं। फिर उस दवा को मरीज को किस समय खाना चाहिए, जिससे दवा का असर उस पर ज्यादा हो। इस तरह से ट्रीटमेंट में बदलाव किया। डॉ. गौतम ने बताया कि ऐसे मरीजों में तीन प्रकार की परेशानियां होती हैं। पहला डिप्रेशन में चले जाना, जिसे हम अवसाद कहते हैं। दूसरा स्ट्रेच, जिसको टेंशन कहते हैं और तीसरा एंजाइटी, जिससे मन में बुरे ख्याल आते हैं, अंदर से दिल घबराता है, बेचैनी होती है, तो इसमें देखा गया कि जिनके शुगर अधिक थी उनमें से 19 प्रतिशत को डिस्प्रेशन की, 56 प्रतिशत को एंजाइटी और 39 प्रतिशत को स्ट्रेच की समस्या थी। पुरुषों में डिप्रेशन की समस्या अधिक पाई गई। कम से कम 25 प्रतिशत पुरुष में यह समस्या थी और 15 प्रतिशत महिलाओं में थी। स्ट्रेच की समस्या 42 प्रतिशत महिलाओं में और 37 प्रतिशत पुरुषों में थी। जो मरीज यह कहते थे कि कुछ मिठा खाए या न खाए उनकी शुगर लेवल हमेशा 200 के ऊपर रहती है। डॉ. एसके गौतम ने बताया कि ऐसे मरीजों की सबसे पहले खान-पान में परिवर्तन कराया गया। उनमें कार्बोहाइड्रे की मात्रा बहुत कम कराई गई। इसके साथ ही प्रोटीन की मात्रा बढ़ाई गई तो देखा गया कि शुगर लेवल को कम करके हम तनाव भरी जिंदगी से बाहर आ सकते हैं। डॉ. गौतम ने बताया कि जब भी किसी को तनाव होता है तो पहले मरीज मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास दौड़ता है। इसके बाद वह नींद की गोलियां खाने लगते हैं, जोकि गलत हैं। लंबे समय तक इलाज चलने के बाद भी लोग ठीक नहीं हो पाते थे।

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