September 8, 2024

संवाददाता।

कानपुर। नगर में वर्ष-2019 का लोकसभा चुनाव ऐसा था जब भाजपा को छोड़कर शहर की दो लोकसभा सीटों पर अन्य बड़े-बड़े दलों के प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे। कानपुर संसदीय सीट पर जहां बसपा और सपा के प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई थी। वहीं अकबरपुर लोकसभा सीट पर सपा, कांग्रेस प्रत्याशी उतने वोट हासिल न कर सके, जो जमानत बचाने के लिए जरूरी थे।कानपुर नगर सीट से 2019 में 14 प्रत्याशी मैदान में थे। भाजपा से सत्यदेव पचौरी ने जीत दर्ज की थी। जबकि कांग्रेस से श्रीप्रकाश जायसवाल दूसरे नंबर पर थे। इसके अलावा सपा से राम कुमार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे। वे कुल वैध मतों को 1/6 वोट भी नहीं पा सके थे। इसके अलावा शिव सेना, सभीजन पार्टी के प्रत्याशी वोटों का आंकड़ा 2 हजार भी पार नहीं कर सके थे। कानपुर लोकसभा में इस बार चुनाव की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस में ही टक्कर देखने को मिल रही है। बसपा प्रत्याशी टिकट घोषित होने के बाद भी चर्चाओं से बाहर हैं। पिछले चुनाव मे 6 निर्दलीय प्रत्याशी एक हजार मतों का आंकड़ा भी नहीं पा सके थे। वहीं वर्ष-1957 से आज तक सपा और बसपा का भी कानपुर सीट पर कभी खाता नहीं खुला। अकबरपुर  सीट पर भाजपा को टक्कर देने के लिए पहली बार सपा प्रत्याशी मैदान में हैं। गठबंधन प्रत्याशी राजाराम पाल भाजपा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। वहीं बीते चुनाव की बात करें तो यहां बसपा दूसरे नंबर पर थी। बसपा ने यहां जातीय समीकरणों को दरकिनार कर बाह्मण चेहरे राजेश द्विवेदी पर दांव लगाया है। वर्ष-2014 के चुनाव की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस से प्रत्याशी राजाराम पाल जमानत तक नहीं बचा सके थे। जबकि उन्हें 1 लाख से अधिक वोट मिले थे। यहां 14 प्रत्याशी मैदान में थे। निर्दलीय प्रत्याशी मनोज गुप्ता को 3270 वोट मिले थे। बाकी 11 निर्दलीय प्रत्याशी भी जमानत नहीं बचा सके थे।शौकिया चुनाव लड़ने वालों को हतोत्साहित करने के लिए निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2009 के बाद 2010 में तहत जमानत राशि में वृद्धि करने का निर्णय लिया । इसके तहत लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 341 (क) के अनुसार पूर्व में निर्धारित जमानत राशि 500 रुपये को बढ़ाकर 25 हजार कर दिया गया। जबकि इसी अधिनियम की धारा-34 के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए निर्धारित जमानत राशि 250 रुपये को बढ़ाकर 12500 रुपये कर दी गई। किसी भी प्रत्याशी को वैध मतों का 1/6 फीसदी वोट न मिलने पर उसकी जमानत राशि चुनाव आयोग जब्त कर लेता है। जब्त हुई जमानत राशि ही आयोग की कमाई मानी जाती है। जमानत के रूप जमा होने वाली प्रतिभूति राशि जब्त होने के बाद निर्वाचन आयोग का राजस्व हो जाता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जब्त हुई जमानत राशि आयोग की कमाई का महत्वपूर्ण जरिया है। प्रदेश की बात करें तो हर चुनाव में यह राशि करोड़ों में होती है।

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