
भक्तों द्वारा मांगी गई कोई भी मुराद यहां अवश्य ही पूरी होती।
संवाददाता।
कानपुर। नगर के ककवन में स्थापित दुर्गा शक्तिपीठ मंदिर में नवरात्रों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। ऐसी मान्यता है कि यहां भक्तों द्वारा मांगी गई कोई भी मुराद अवश्य ही पूरी होती है और यह भी बताया जाता है कि महाभारत काल की गौरव गाथा तथा कालक्रम की स्मृतियों को समेटे इस पुरातन मंदिर की स्थापना धर्मराज युधिष्ठिर के राजपुरोहित महर्षि कंडक द्वारा की गई थी। कालांतर में ककवन कभी काकवन के नाम से जाना जाता था।इसका ये नाम महर्षि कंडक के नाम से पड़ा।जिसका अपभ्रंश ककवन आज भी प्रचलित है।इसका उल्लेख वन पर्व और वृहम वैवर्त पुराण में मिलने वाले संकेतों से मिलता है।ऐसा बताया जाता है कि पांडवों के वनवास के समय उनके पुरोहित महर्षि कंडक ने अपनी तपस्या के दौरान अपना पूरा ध्यान राजपुत्रों के हितार्थ चिंतन में लगाया।महर्षि ने अस्थाई रूप से मठ निर्माण कर देवी की पूजा अर्चना कर पांडवों के वैभव की पुनः प्रतिष्ठा की कामना की थी। धर्मराज युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के पश्चात पांडवों ने इस विपिन वन में भव्य मंदिर का निर्माण कराकर मां दुर्गा की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। देवी भागवत में अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित द्वारा भी इस मठ में देवी की अभ्यर्चना का संकेत मिलता है। कालक्रम के थपेड़ों में ध्वस्त होकर यह भव्य मठ जंगल के टीले में परिवर्तित हो गया था।लेकिन सम्राट अशोक के समय में इसकी पुनः प्रतिष्ठा हुई और एक लघु मंदिर ने आकर लिया। लेकिन मुगल काल में मंदिर तोड़े जाने के दौरान यह मठ भी उसका शिकार हो गया। इसके बाद सन 1734 में इस पवित्र शक्तिपीठ का जीर्णोद्धार एक बार पुनः राजपूत राजाओं द्वारा कराया गया। इस मंदिर में स्थापित कसौटी जैसे किसी देश के कीमती पत्थर से निर्मित होने के कारण विश्व बाजार में बेशकीमती होने के कारण यह चोरों का भी निशाना बनी। देवी कृपा से चोरों द्वारा डिलीवरी देने से पहले ही ग्रामीणों की सूचना पर मूर्ति पास के तालाब से बरामद हो जाने के बाद काफी दिनों तक ककवन थाने में रखी रही और कुछ समय पश्चात ग्रामीणों के अनुरोध पर उन्हें सौंप दी गई।