संवाददाता।
कानपुर। नगर में ऑटिज्म के मरीजों में दिन पर दिन वृद्धि देखने को मिल रही है। अमेरिकन साइकोलॉजी की एक रिसर्च में बताया गया है कि देश में पहले 100 में से एक मरीज ऑटिज्म का मिलता था, लेकिन कोविड काल के बाद से हर 36वां मरीज ऑटिज्म का शिकार हो रहा है। यह बात कानपुर की साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रियंका रावत ने कहीं। उन्होंने बताया कि पहले बच्चों की एक्टिविटी बाहर ज्यादा होती थी, लेकिन कोरोना काल के बाद से उनकी स्क्रीन टाइमिंग बढ़ गई है। जन्म से लेकर ही बच्चों को स्क्रीन के आगे बैठा दिया जाता है। इस कारण भी वह ऑटिज्म का शिकार हो रहे हैं। ऑनलाइन जमाने में बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं हो पा रहे हैं या फिर यह कह ले कि उनका विकास समय के साथ नहीं हो रहा है। इसे वर्चुअल ऑटिज्म भी कहते हैं। डॉ. प्रियंका रावत ने बताया कि ऑटिज्म के लक्षण जन्म से लेकर 2 साल के बीच में दिखने लगते हैं। बच्चों को लाइट से प्रॉब्लम होगी या फिर साउंड से या किसी चीज को छूने में उसे दिक्कत होगी। यह मुख्य लक्षण होते हैं। यदि आपका बच्चा भी ऐसा कर रहा है तो उसका तुरंत ही उपचार शुरू कर देना चाहिए, जितनी जल्दी उपचार शुरू होगा उतनी ही जल्दी उसे आराम मिल जाएगा। इसमें थेरेपी और मेडिकेशन के माध्यम से बच्चों को 99% आराम मिल रहा है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में उनका विकास बहुत देर से होता है। उन्हें बोलने में दिक्कत होती है। किसी भी चीज को बार-बार रिपीटेशन करते हैं, कहने का तात्पर्य है कि वह एक ही पैटर्न को फॉलो करते रहते हैं। ऐसे बच्चों में सोशल इंटरेक्शंस भी कम होता है। इन बच्चों का इलाज साइकोलॉजिस्ट और साइकेट्रिस्ट के माध्यम से ही कराना चाहिए। डॉ. रावत ने कहा कि यदि गर्भावस्था के दौरान मां अपना पूरा ख्याल रखती है तो बच्चा हमेशा स्वस्थ रहेगा। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को चाइनीस फूड का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके अलावा मोबाइल का भी प्रयोग भी कम से कम करना चाहिए और मां को हमेशा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। इसका बच्चे पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ेगा।