September 20, 2024

संवाददाता।
कानपुर। नगर में जुलूस ए मोहम्मदी यानी बारावफात का जुलूस 28 सितंबर 2023 गुरुवार को निकाला जा रहा है। यह जुलूस पैगंबर इस्लाम मोहम्मद साहब के जन्मदिन के मौके पर निकाला जाता है। इस जुलूस को एशिया का सबसे बड़ा जुलूस कहा जाता है। जुलूस के सिलसिले में ऐतिहासिक घटना भी जुड़ी हुई है। जिसमें अंग्रेजों के द्वारा भीड़ पर सीधे गोली चलाई जाने के बाद कई लोगों की मौत हो गई थी। हिंदू मुस्लिम एकता के साथ जब लोग इसके विरोध में एक साथ सड़क पर आए और जुलूस की शक्ल में निकले। उस दिन इतेफाक ये था, कि वह दिन हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन का दिन था। तब से लेकर आज तक जुलूस ए मोहम्मदी को बड़ी शक्ल में निकाला जाता है। इस जुलूस को 100 साल से भी अधिक समय हो गया है।  साल 1913 उस वक्त अंग्रेजों की हुकूमत हुआ करती थी। कानपुर में अंग्रेजों ने सरसैया घाट से लेकर कोपरगंज चौराहे तक बड़ी चौड़ी सड़क बनाने का काम शुरू किया। इसी दौरान मेस्टन रोड स्थित मछली बाजार मस्जिद का एक हिस्सा अंग्रेजों ने तुड़वा दिया। इसके बाद मेस्टन रोड स्थित मस्जिद को बनवाने के लिए हजारों लोग इकट्ठा हो गए। खास बात यह थी कि उस भीड़ में हिंदू और मुसलमान साथ में शामिल हुए। अंग्रेजों को यह नागवार गुजरा विरोध के दौरान अंग्रेजों ने हजारों लोगों की भीड़ पर सीधे गोली चलवा दी। इस गोली कांड में काफी लोग शहीद हुए थे। इसके बाद अगले दिन शहीदों की गायबाना नमाज ए जनाजा में हजारों की भीड़ शहर के परेड स्थित ग्राउंड में पहुंचकर दुआ की। इत्तेफाक यह था कि इस दिन पैगंबर इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब का जन्मदिन था। हजारों लोग इकट्ठा हुए ,जिसमें हिंदू भाई भी शामिल हुए थे। अंग्रेजों के विरोध में जुलूस की शक्ल में वहां से निकले। इसी परेड ग्राउंड को पहले अंग्रेजों की मिलिट्री छावनी कहा जाता था। तब से जुलूस निकलने का सिलसिला शुरू हुआ ,जो जुलूस आज तक निकाला जा रहा है। जमीयत उलेमा हिंद के जिला सचिव जुबैर अहमद फारुकी ने बताया की 1947 को जुलूस नहीं निकाला गया था। मुल्क में हालात ऐसे थे कि लोग घरों से नहीं निकल पा रहे थे। इसलिए लोगों में खौफ था ।जुलूस को न निकलने का फैसला किया गया था। जुबैर अहमद फारूकी ने बताया साल 1948 में शहर जमीयत उलेमा के पदाधिकारी ने जुलूस को अपनी निगरानी में निकलना शुरू किया। उस वक्त बाबा खिजर मोहम्मद, मौलाना अब्दुल बाकी , काजी मुख्तार अहमद जो जमीयत शहर के अध्यक्ष थे ।शमीम अहमद फारुकी जो शहर जमीअत उलमा के महामंत्री थे। इन लोगों की निगरानी में जुलूस ए मोहम्मदी 1948 से शुरू किया गया। जुलूस ए मोहम्मदी वर्तमान में एशिया का सबसे बड़ा जुलुस माना जाता है। इस जुलूस में अनुमान के मुताबिक तकरीबन 5 लाख लोग शामिल होते हैं। इस जुलूस की लंबाई की बात की जाए, तो जुलूस तकरीबन 14 किलोमीटर लंबा होता है। इसलिए इस जुलूस को एशिया का सबसे बड़ा जुलूस भी कहा जाता है। पैगंबर ए इस्लाम के इंसानियत के पैगाम को आवाम तक पहुंचाने के लिए लाखों लोग इसमें शामिल होते हैं। इसके साथ ही पैगंबर ए इस्लाम के जन्म दिवस के मौके पर लोग अकीदत और खुशी के साथ इसमें शामिल होकर दुरूदो सलाम पढ़ते हुए निकलते हैं। साल 2023 में जुलूस के 111 साल पूरे हो गए हैं। इस साल 111 वां जुलूस ए मोहम्मदी का जुलूस निकाला जा रहा है। लगातार इस जुलूस में अकीदतमंदों की तादाद बढ़ती जा रही है। जुलूस 28 सितंबर 2023 को परेड ग्राउंड से दोपहर जौहर की नमाज के बाद शुरू होता है। जमीयत उलेमा हिंद के पदाधिकारी और जिला प्रशासन के अधिकारियों के हरी झंडी दिखाई जाने के बाद जुलूस निकाला जाता है। इसके बाद शहर के निर्धारित रूटों से होता हुआ जुलूस निकलता है ।जिसमें अलग-अलग जगह पर जुलूस का स्वागत किया जाता है। शाम 4:30 के बाद मेस्टन रोड स्थित मछली बाजार मस्जिद के पास नमाज अदा की जाती है। जुलूस यहां से फिर आगे बढ़ता है और शहर के अलग-अलग इलाकों में होता हुआ फूलबाग पहुंचता है। फूलबाग में तकरीबन 6:30 बजे दुआ की जाती है ,यहीं से जुलूस का समापन होता है। 

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