September 20, 2024

संवाददाता।
कानपुर। नगर में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चल रहे कुष्ठ रोगी खोज एवं नियमित निगरानी अभियान के तहत 2023-24 में 18 नए कुष्ठ रोगी मिले हैं। इन मरीजों का इलाज भी शुरू कर दिया गया है। यह अभियान अभी पूरे सितंबर माह चलेगा। जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ. महेश कुमार ने बताया कि इस अभियान शुरूआत 1 सितंबर से हुई थी। इसके तहत 21 दिनों में अब तक लगभग 5.85 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। इसमें 1379 संभावित मरीजों की पहचान की गई है। वर्तमान में जनपद में 185 कुष्ठ रोगियों का इलाज पहले से ही चल रहा है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आलोक रंजन ने बताया कि कुष्ठ रोग छुआ-छूत की बीमारी नहीं है। पहले के लोगों ने यह भ्रांति फैला रखी है। यह भी जरूरी नहीं है कि परिवार में किसी ‌‌व्यक्ति को यह बिमारी थी इस कारण दूसरी पीढ़ी को भी हो गई। यह बात एक स्टडी में सामने आ चुकी है। जिला कुष्ठ अधिकारी डॉ. महेश कुमार ने बताया कि कुष्ठ रोगियों से भेदभाव नहीं करना चाहिए। हम लोगों ने अभी तक घर-घर जाकर जो सर्वे किया है उसमें भी यह बात सामने आई है कि जो नए मरीज मिल रहे है उनके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं थी जो समाज में फैली हुई है। जबकि यह बिमारी हवा में फैले सेंक्रमण से होती है। नाक के रास्ते से यह संक्रमण ‌व्यक्ति के अंदर जाता है और जिसकी शारीरिक क्षमता कम होती है उसको अपनी चपेट में ले लेता है। कुष्ठ रोग आम रोगों की तरह ही है, जो मल्टी ड्रग थेरेपी से ठीक हो जाता है। लेकिन समय पर इलाज न किया जाए तो यह बीमारी बड़ा रूप भी ले सकती है। इसी लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर कुष्ठ रोगियों को खोजने का काम कर रही है। 30 सितंबर तक चलने वाले इस अभियान के अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग की टीम घर-घर जाकर संभावित कुष्ठ रोग के लक्षण वाले व्यक्तियों को चिन्हित कर रही है। उनकी पहचान कर तत्काल प्रभाव से उपचार उपलब्ध कराए जाने के साथ ही कुष्ठ रोग के बारे में समुदाय को जागरूक किया जा रहा है, ताकि मरीज के साथ कोई दुर‌व्यवाहर न करे। इसे हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है जिला कुष्ठरोग सलाहकार डॉ. संजय यादव से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग को हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह बैसिलस माइक्रो बैक्टीरियम लेप्राई के जरिए फैलता है। हवा में यह बैक्टीरिया किसी बीमार व्यक्ति से ही आते हैं और वातावरण में फैल जाते है। यह एक संक्रामक रोग है। यह उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों (एनटीडी) की श्रेणी में आता है। यह रोग किसी कुष्ठ रोगी के साथ बात करने, उसके बगल में बैठने या छूने से नहीं फैलता है। उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग चमड़ी एवं तंत्रिकाओं को प्रभावित करता है। यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है और कुछ वर्षों में पूरी तरह से कुष्ठ रोग के लक्षण नजर आने लगते हैं। यदि शुरुआत में ही रोग का पता चल जाए और उसका समय से उपचार शुरू कर दिया जाए तो रोगी को दिव्यांगता से बचाया जा सकता है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से हर सीएचसी, पीएचसी में त्वचा से संबंधित चिकित्सकों को तैनात कर दिया गया। यदि कोई मरीज आता है तो उसे अपने ही क्षेत्र में बेहतर उपचार मिल सकेगा। इसके अलावा आशा बहुएं भी घर-घर जाकर सर्वे कर रही है। लोगों को सही उचार के प्रति जागरुक कर रही हैं। कुष्ठ रोग दो प्रकार के होते है। पहला पॉस बेसलरी ‌व मल्टी बेसलरी। पीबी में मरीज के शरीर में दो या दिन दाग होते है, लेकिन एमबी में पांच से अधिक दाग होते है। पीबी में लगातार छह माह तक इलाज चलाकर खत्म किया जा सकता है। एमबी में करीन एक साल लगातार उपचार चलता है। डॉ. महेश कुमार ने बताया कि इस संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा गंदगी वाले इलाके में होता है क्योंकि ऐसे इलाके में माइक्रो बेक्टेरियन लेबरा नामक संक्रमण पाया जाता है। इस संक्रमण के फैलने के कारण ही यह बिमारी जन्म लेती है। अधिकतर यह बिमारी स्लम एरिया में अधिक देखने को मिलती है। 

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