संवाददाता।
कानपुर। नगर मे कानपुर में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में आज “जैव-ऊर्जा के लिए संसाधनों की योजना और अनुकूलन” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर, एशियन एसोसिएशन ऑफ शुगर केन टेक्नोलॉजिस्ट, लखनऊ और स्प्रे इंजीनियरिंग डिवाइसेज लिमिटेड, चंडीगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत एनएसआई के निदेशक प्रोफेसर डी. स्वाईन ने दीप प्रज्ज्वलन और मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया। इस सेमिनार में भारत के प्रमुख चीनी उत्पादक इकाइयों में कार्यरत कार्यकारी अध्यक्षों के अलावा मुख्य कार्यकारी अधिकारियों, महाप्रबंधक ने भी भाग लिया। प्रो. डी. स्वाईन ने कहा कि केवल चीनी उद्योग से प्राप्त फीडस्टॉक और अनाज का उपयोग करके पेट्रोल में लक्षित 20% इथेनॉल मिश्रण 2025 तक प्राप्त नहीं किया जा सकता है। निर्धारित मात्रा में इथेनाल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए गैर-खाद्य फीडस्टॉक से इथेनाल उत्पादन पर जोर देना होगा। उन्होंने सफेद चीनी की जगह कच्ची चीनी के उत्पादन पर भी जोर दिया, जो न केवल मानव उपभोग के लिए स्वास्थ्यप्रद है बल्कि उसके उत्पादन प्रक्रिया में आने वाली लागत भी किफायती है। प्रो.स्वाईन ने कहा कि चीनी उद्योग को चीनी की मांग और आपूर्ति को संतुलित करने और जैव-आधारित उत्पादों और हरित प्रौद्योगिकियों के लिए एक आशाजनक केंद्र के रूप में उभरने की दिशा में तत्पर रहना होगा। वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट के महानिदेशक संभाजी के. पाटिल ने कहा कि चीनी उद्योग, जो स्वच्छ, हरित और नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन का प्रमुख केंद्र है, भविष्य के लिए ईंधन ग्रीन हाइड्रोजन का एक अच्छा संभावित स्रोत हो सकता है। एसईडीएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक विवेक वर्मा ने बायोमास को बॉयलर में जलाने के बजाय इसके इथेनॉल, उर्वरक, बायो-डिग्रेडेबल पॉलिमर, कार्बनिक रसायनों आदि के कुशल उपयोग के बारे में बताया। चीनी और अनाज आधारित आसवनी इकाइयों में बॉयलर के प्रतिस्थापन के रूप में एमवीआर प्रौद्योगिकियों को लागू करने की संभावनाओं पर जोर दिया।