
संवाददाता।
कानपुर। नगर में मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व लोहड़ी का त्योहार पंजाबी, सिंधी परिवारों में खूब धूमधाम के साथ मनाया गया। घर-घर ढोल नगाड़े बजे। वहीं, समाज के लोग एक जगह इकट्ठा हुए और फिल्मी गीतों पर जमकर डांस किया। इसके बाद लजीज व्यंजनों का एक साथ बैठकर लुफ्त उठाया। कृष्णा नगर निवासी मदन भाटिया के नेतृत्व में सभी सिंधी परिवारो ने अपने साथियों और परिवार के लोगों को आमंत्रित किया। रात में जब परिवार के सभी सदस्य एक जगह पर एकत्रित हुए तो पहले सभी ने ढोल की थाप पर जमकर डांस किया। इसके बाद अग्नि के चारों ओर घूम-घूम कर उसमें गुड़, रवा, तिल के लड्डू डालकर परिक्रमा करते हुए खुशी का इजहार किया। वहीं, इस मौके पर जिन लोगों की नई शादियां हुई थी उन्हें भी बधाई दी और तरह-तरह के गिफ्ट दिए, जिनके घर में बच्चे पैदा हुए थे उन घरों में भी जश्न का माहौल देखने को मिला। देर रात तक घरों में लोग जश्न मनाते हुए नजर आए।लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन से माघ मास की शुरुआत भी हो जाती है। लोहड़ी के दिन अग्नि जलाकर परिवार के सभी सदस्य परिक्रमा करते हैं और अग्नि को रवि की फसल भेंट की जाती है। साथ ही परिवार के रिश्तेदारों और प्रियजनों को इस पर्व की बधाई देते हैं और ताल से ताल मिलाकर नृत्य करते हैं। सिखों और पंजाबियों के लिए लोहड़ी एक खास त्योहार है। इस त्योहार की तैयारियां कुछ दिन पहले से ही घरों में शुरू हो जाती हैं। माना जाता है लोहड़ी के बाद से ही दिन बड़े होने लगते हैं, यानी माघ मास शुरू हो जाता है। यह त्योहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। नवविवाहितों के साथ अठखेलियां करती हुई लड़कियां यह कह कर लोहड़ी मांगती हैं “लोहड़ी दो जी लोहड़ी, जीवै तुहाडी जोड़ी”। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो, उन्हें विशेष तौर पर लोहड़ी की बधाई दी जाती है। घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी का काफी महत्व होता है। इस दिन विवाहित बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है। ये त्योहार बहन और बेटियों की रक्षा और सम्मान के लिए मनाया जाता है। पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का पर्व नई फसल की बुआई और पुरानी फसल की कटाई से भी जुड़ा हुआ है। इस दिन से ही किसान अपनी नई फसल की कटाई शुरू करते हैं और सबसे पहले भोग अग्नि देव को लगाया जाता है। अच्छी फसल की कामना करते हुए ईश्वर का आभार व्यक्त किया जाता है। साथ ही सूर्य देव और अग्नि देव का आभार व्यक्त किया जाता है और प्रार्थना की जाती है कि जैसी कृपा आपने इस फसल पर बरसाई है, उसी तरह अगले साल भी फसल की अच्छी पैदावार हो।