
संवाददाता।
कानपुर। आपने बो लाइन तो सुनी ही होगी.. जिनका कोई नही होता है उनका भगवान होता है। ऐसे ही एक व्यक्ति हमारे नगर में सामने आए है जो स्वयं बचपन से पोलियो से पीड़ित है और दिव्यांग भी है। वो स्वय ट्राई साइकिल से चलते हैं, लेकिन अन्य दिव्यांगों के मददगार हैं। वो अपने पैरों पर खड़े तक नही हो पाते है लेकिन पूरे नगर भर में घूम घूम कर नगर की सड़कों पर लोगो से पैसे मांगते है और फिर उसी पैसे से दूसरों जरूरतमंद की मदद करते हैं। 12 साल पहले उन्होंने किसी दिव्यांग को रास्ते पर पैसे मांगते देखा। जिस व्यक्ति से दिव्यांग ने पैसे मांगे, उसने उससे अभद्रता की। इसके बाद उन्होंने दिव्यांगों की मदद करने की ठान ली। आज 12 सालों से वह नगर से 80 किलोमीटर के दायरे में जाकर लोगों से भीक्षा मांगते है। सत्य प्रकाश किसी भी व्यक्ति से पैसा लेते हैं, तो रजिस्टर में उसका नाम और दिए गए रुपये जरूर लिख लेते हैं। वे कहते हैं कि इससे दूसरों को बताया जा सकता है कि वह इन रुपयों का खुद के ऊपर इस्तेमाल नहीं करते ही। बल्कि जरूरत मंद दिव्यांगों की मदद करते हैं। वे इन पैसों को इकट्ठा करके दिव्यांगों को ढूंढकर उनके दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाते हैं, उन्हें ट्राईसाइकिल दिलवाते हैं। दिव्यांग सत्य प्रकाश नगर के नवाबगंज में रहते हैं। सत्य प्रकाश बचपन से ही पैर के पोलियो से ग्रसित थे। चलने फिरने में असहाय थे। ऐसे में वे ट्राई साइकिल के सहारे कहीं भी आते जाते थे। सत्य प्रकाश बताते हैं कि साल 2011 की बात है। उनके साथ एक हादसा हो गया। वे शुक्लागंज से कानपुर के लिए वापस आ रहे थे, तभी एक कार ने उनकी ट्राई साइकिल पर टक्कर मार दी। हादसे में दिव्यांग सत्य प्रकाश बुरी तरह से घायल हो गए। कई महीने सत्य प्रकाश का इलाज चला, लेकिन वह ठीक नहीं हो सके। उनके पैर में रॉड डाल दी गई। कई दिनों तक आईसीयू में रहे, तब जाकर उनका जीवन बच सका। इस हादसे के बाद सत्य प्रकाश चलने फिरने में पहले से भी ज्यादा असहाय हो गए। सत्य प्रकाश ने बताया, 2011 में वह एक दिन घर के पास बने हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाने गए। उस मंदिर में देखा कि एक दिव्यांग व्यक्ति मंदिर में आए किसी से भीख मांग रहा था। इस पर व्यक्ति ने अभद्रता करते हुए कहा कि यह पैसे तो मैं प्रसाद चढ़ाने के लिए लाया हूं, कोई तुम्हारे लिए नहीं लाया। ऐसा सुनकर सत्य प्रकाश ने उस व्यक्ति से कहा कि यह भगवान हमें खुद पैसा देते हैं, इसे ज्यादा जरूरत इस पैसे की दिव्यांग को है। उस व्यक्ति ने दिव्यांग सत्य प्रकाश से कहा कि अगर ऐसा है ,तो तुम ही इसे पैसे दे दो। ऐसे में सत्य प्रकाश ने उस दिव्यांग को पैसे दे दिए। जो पैसे मंदिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए वह घर से ले गए थे। उसी दिन से सत्य प्रकाश ने दिव्यांगों की मदद करने का निर्णय लिया। उसके बाद उन्होंने सड़क पर निकलकर लोगों से पैसे मांगने शुरू कर दिए। सत्य प्रकाश नगर की सड़कों पर लोगों से पैसे मांगते हैं। उन्होंने बताया कि जब लोग उन्हें मदद के तौर पर पैसे देते हैं, तो तुरंत ही अपने रजिस्टर में पैसे देने वाले का नाम लिख लेते हैं। पैसे देने वाले के नाम के साथ उसके द्वारा दिए गए पैसे की रकम भी लिख देते हैं। कोशिश करते हैं कि उसे इंसान का मोबाइल नंबर भी लिख लिया जाए। अगर व्यक्ति अपना नंबर दे देता है, तो उसका मोबाइल नंबर भी लिख लेते हैं। उन्होंने कहा कि, ऐसा वह इसलिए करते हैं कि पैसे देने वाले की रकम और उसका हिसाब किताब उनके पास बना रहे। जब से उन्होंने मदद करने के लिए लोगों से पैसे मांगने का सिलसिला शुरू किया। तब से लगातार वह रजिस्टर में नाम लिखकर पैसे देने वालों का नाम मेंटेन करते हैं। बताया कि कुछ रजिस्टर खराब हो चुके हैं, लेकिन कुछ रजिस्टर अभी भी उन्होंने संभाल कर रखे हुए हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे दिव्यांगों की तलाश में वह हमेशा रहते हैं। जिन्हें यह नहीं पता होता कि दिव्यांग सर्टिफिकेट कैसे बनता है। दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाने के लिए उनके पास पैसा नहीं होता है। ऐसे लोगों को वृद्धा पेंशन, दिव्यांग पेंशन आदि योजनाओं का लाभ दिलाते हैं। उन्हें ट्राई साईकिल दिलवाते हैं। बता दें कि सत्य प्रकाश हर सोमवार को कानपुर के रामादेवी स्थित काशीराम अस्पताल और गुरुवार को उर्सला जिला अस्पताल में जाते हैं। यहां पर वह दिव्यांगों के सर्टिफिकेट बनवाने के लिए अप्लाई करते हैं। सत्य प्रकाश शुक्ला 12 वर्षो से दिव्यांगजनो को ढूंढकर उनकी मदद करने का काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इतने सालों में तकरीबन 900 लोगों के दिव्यांग सर्टिफिकेट वह बनवा चुके हैं। उनका लक्ष्य है कि कोई भी दिव्यांग जानकारी के अभाव और पैसे के अभाव में उसे मिलने वाली सुविधा से वंचित ना रह जाए। दिव्यांग सत्य प्रकाश की भाभी सविता शुक्ला ने बताया कि सत्य प्रकाश की बचपन से देखभाल उन्होंने ही की है। उनके घर पर कुछ ऐसी स्थितियां बनीं, जिसके कारण परिवार बिखर गया। सत्य प्रकाश के माता पिता न होने के कारण बचपन से ही उनकी देखरेख उनकी भाभी सविता ने की है। उन्होंने बताया कि शुरुआती समय में जब सत्य प्रकाश सड़कों पर लोगों से पैसे मांगते थे। तो मोहल्ले के कुछ लोग उन्हें कहीं देख लेते थे। फिर वह घर पर आकर शिकायत करते थे कि आपका सत्य प्रकाश सड़क पर भीख मांगता है। इसलिए ऐसा कहते थे कि वह जानते थे, उनका बड़ा घर बना हुआ है। घर में उनके भतीजे कमाने वाले हैं। उनका रहन-सहन खान-पान अच्छा है। कई बार मैंने भी सत्य प्रकाश को टोका, लेकिन सत्य प्रकाश ने कहा कि वह अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के मदद के लिए ऐसा करते हैं। इसके बाद जब कुछ सालों में मैंने देखा कि सत्य प्रकाश को कुछ लोग आकर दुआ देते हैं। उसकी तारीफ करते हैं, तो उन्होंने भी मन नहीं किया।