संवाददाता।
कानपुर। आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले चंद्रशेखर आजाद की आखरी निशानी आज भी इस पुराने नगर (कानपुर) में उपस्तिथ है। उनकी 100 वर्ष पुरानी टोपी जो उन्होंने अपने मित्र को कानपुर में दी थी। सन 1925 ई में काकोरी कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद ट्रेन से कानपुर आ रहे थे। तो रास्ते मे उन्हें आभास हुआ कि कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर सीआईडी की नज़रे उन्ही को तालाश कर रही होंगी। क्योकि ब्रिटिश पुलिस का जाल उस समय हर जगह फैला हुआ था। फिर आज़ाद ने गंगाघाट रेलवे स्टेशन पर उतर कर पैदल शुक्लागंज से होते हुए कानपुर की तंग गलियों में स्थित पटकापुर अपने मित्र नारायण प्रसाद अरोड़ा के पास पहुँचे। रात भर वह अपने मित्र के घर रहे और सुबह प्रयागराज के लिए फिर निकल रहे थे तब उनके मित्र ने बाहर निकल कर स्थिति देखी तो नगर में जगह जगह, मोड़ो पर ब्रिटिश पुलिस तैनात थी। उनके मित्र ने उन्हें जाने के लिए मना किया पर वह नही माने और फिर उन्होंने अपना भेष बदल लिया दूसरे कपड़े पहने और अपने मित्र को अपनी टोपी देकर और उनकी दूसरी टोपी लेकर प्रयागराज के लिए ब्रिटिश पुलिस के सामने से निडर होकर निकल गए। चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी, टोपी मेस्टन रोड स्थित अशोक पॉलिटिकल लाइब्रेरी में सहेज कर रखी गई है। दरअसल चंद्रशेखर आजाद के मित्र के पौत्र अरोड़ा जी ने यह टोपी लाइब्रेरी की तिलक सोसाइटी को 2013 में धरोहर के रूप में रखने के लिए दी। लाइब्रेरी का इतिहास भी काफी पुराना है। यह लाइब्रेरी 1924 में बनाई गई थी। इसकी आधारशिला पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। इसी लाइब्रेरी में चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी 100 साल पुरानी टोपी रखी हुई है। मेस्टन रोड स्थित अशोक पॉलिटिकल लाइब्रेरी के देखरेख करने वाले और तिलक सोसायटी के महामंत्री प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद की यह टोपी उनकी आखिरी निशानी है। क्योंकि यही टोपी पहने हुए उन्होंने काकोरी कांड किया था। इसके बाद वह जब अंग्रेजों से छिपछिपा कर भाग रहे थे। तभी ट्रेन से वह गंगाघाट स्टेशन पर उतर गए। इसके बाद अपने मित्र जो पटकापुर में रहते थे, उनके घर पहुंच गए। आजाद जी उनके घर जाकर छुप गए। उन्होंने बताया क्योंकि चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में माहिर थे, उन्होंने अपने मित्र के कपड़े बदल कर भेष बदल, अपने कपड़े वहीं छोड़कर निकल गए। इसके अगले ही दिन चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद में शहीद हो गए। इसलिए चंद्रशेखर आजाद की यह टोपी उनकी आखिरी टोपी बताई जाती है। जिसे शहीद चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी के रूप में लाइब्रेरी में संजोकर रखा गया है। प्रदीप द्विवेदी ने बताया की साल 2013 में अरोड़ा के पौत्र अरविंद अरोड़ा ने तिलक मेमोरियल सोसायटी को यह टोपी धरोहर के रूप में दे दी थी। यह चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी बताई जाती है। इसके अलावा अभी तक तो कहीं नहीं सुना गया कि आजाद जी की कोई भी आखिरी निशानी कहीं पर मौजूद हो।