कानपुर। आत्महत्या करने वाली आईआईटी कानपुर में पीएचडी कर रही शोध छात्रा प्रगति की मौत से कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। एक दिन पहले तक सामान्य रही छात्रा अचानक से कैसे मौत को गले लगा सकती है। क्रोध में ऐसा कदम उठाया या अपने मन की बात किसी से नहीं कह सकी और घबराहट में मौत को गले लगा लिया।
कानपुर मेडिकल कालेज के मनोचिकित्सक डा. धनंजय चौधरी ने इस घटना पर बताया कि ऐसे मामलों के पीछे मानसिक तनाव ही मुख्य कारण निकल कर आता है, बहुत कम मामले ऐसे होते है, जिनमें लोग आवेश में आने के कारण आत्महत्या कर लेते है।
ऐसे मामलों में देखा गया है कि जो इंसान आजाद महसूस नहीं करता है और वह अंदर ही अंदर परेशान रहता है। अपनी मन की बात किसी से कह नहीं पाता है। उसके मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं। ऐसे लोग खुद कुछ कहते नहीं है, इस वजह से परिवार के लोग भी उनके विचार नहीं समझ पाते हैं।
डा. चौधरी ने बताया कि यदि किसी को गुस्सा अधिक आता है तो ऐसे इंसान के मात- पिता को थोड़ा सजग हो जाना चाहिए। उन्हें अपने बच्चों की काउंसिलिंग करानी चाहिए। इस तरह के मानसिक रूप से तनाव में रहने वाले लोग अपने गुस्से में आकर तुरंत कुछ न कुछ गलत कदम उठा लेते है। यह गुस्सा कुछ ही देर के लिए होता है। लेकिन ये गुस्सा काफी खतरनाक होता है।
जीवन शैली में असंतुलन से भी व्यक्ति दिमागी रूप से तनाव में रहता है। तनाव बना रहने से नकारात्मक विचार पनपने लगते हैं, ऐसे में जीवन शैली को सुधारना जरूरी होता है।
डॉ. चौधरी ने बताया कि लगातार पढ़ाई से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है, जैसे-जैसे कक्षा बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती जाती है। यदि बच्चे को दिमागी रूप से मजबूत नहीं किया गया तो फिर उसके मन में तनाव बढ़ने लगता है। फिर एक दिन ऐसा आता है कि तनाव इतना बढ़ जाता है कि वह कुछ गलत कदम उठा लेता है।