October 5, 2024

कानपुर। माता और संतान के बीच के अटूट संबंध उसकी सुरक्षा और दीर्घायु के लिए माताओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत रखा और घाट किनारे जाकर पूजा अर्चना की। लगभग 36 घंटों तक रखा जाने यह व्रत छठ पर्व की ही भांति मनाया जाता है। इस दौरान माताओ ने  बिना अन्न  जल ग्रहण किए निर्जला व्रत किया। यह व्रत सप्तमी वृद्धा अष्टमी से शुरू हुआ जो  नवमी तिथि को समाप्त होगा। यानी नवमी तिथि लगने पर व्रत का पारण किया जाएगा । वहीं जो व्रती महिलाएं अष्टमी तिथि का व्रत रख रही हैं, उनका पारण दूसरी सुबह किया जाएगा।  इस व्रत को जितिया या जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत मुख्यतः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के आसपास के इलाकों में किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के करने से संतान को रोग, दोष, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। बुधवार को व्रतधारी महिलाओं ने सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किया और व्रत का संकल्प लिया। पूजा के लिए एक साफ स्थान पर भगवान जीमूतवाहन, जिन्हें इस व्रत का प्रमुख देवता माना जाता है, की मूर्ति या चित्र स्थापित किया । पूजा सामग्री में जल, चावल, फल, फूल, धूप-दीप, कुमकुम, और मिठाई को  शामिल किया गया।  महिलाओं ने निर्जला उपवास रख बिना जल ग्रहण किए व्रत का पालन किया। संध्या के समय जीमूतवाहन की कथा का वाचन और श्रवण किया। पूजा के अंत में पुत्रों की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना की गई। नवमी को व्रतधारी महिलाएं पारण के साथ व्रत का समापन करेंगी जिसमें चढाया गया प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। नगर के सरसैयाघाट ,परमट,गंगा बैराज,बिठूर आदि गंगा के घाटों में पूजन का दौर सुबह से शाम तक चला जहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड देखी गयी। जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी बताई जाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गए। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी के पांच पुत्र थे । अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया और ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया।