February 7, 2025


आया है ऋतुराज ले, फूलों का अनुराग।
भौंरें कोयल छेड़ते, नए निराले राग।।

पीली सरसों की चुनर, पीत धरा का रूप।
गेहूँ की बाली सजे, मधुरम रूप अनूप।।

बीत शरद ऋतु अब गयी, नया धरा परिधान।
लायी ऋतु मधुमास की, अधरों की मुस्कान।।

बसंत ऋतु संगीत में, मुखरित होते मूक।
मन वीणा के तार में, गुंजित कोयल कूक।।

विरह समय अब मिट रहा, मिलता मन का मीत।
छेड़ा बसंत पर्व ने, मधुर मिलन नव गीत।।

देखा अनुपम कली को, अलि गाये नव राग।
आज बौर से लद रहा, अमराई का बाग।।

अंत शीत मौसम हुआ, जलता नया चिराग।
नव पल्लव नव फूल से, महक रहे हैं बाग।।

पूजन हो माँ शारदे, ज्ञान तिमिर हो अंत।
माघ शुक्ल की पंचमी, आया पर्व बसंत।।

रंग ऋतुराज ने लिए, धरती दुल्हन रूप।
अनुपम प्रकृति संग में, लागे धूप अनूप।।

संजीव कुमार भटनागर

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