December 3, 2024
  • संजीव कुमार भटनागर

गया दिसम्बर आया जनवरी
साल बदला है मौसम वही,
ऋतुओं का परिवर्तन होता
शीत में कोहरा ठिठुरन बढ़ी|

अच्छी लगती गुनगुनी धूप
शरद के बाद हेमंत अनूप,
जगमगाती सर्दी की रातें,
उम्मीदों भरी हर पल की बातें।

बीत गया था साल पुराना
देके गया यादों का खजाना,
खुशियों की रोशनी ने रचा
नए दिन का नया फसाना|

समय का चक्र यूंही चलता
अनुभव जीवन को देते रहता,
गम और खुशी के सफ़र में
नए आसमान को छूने चलता|

दिसंबर अब जाने को तैयार
जनवरी का मौसम है बेकरार,
नयी चुनौतियाँ नए विश्वास लिए
मंज़िल पाने को करते इंतज़ार|

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