कानपुर। आईआईटी कानपुर के छात्रों का पाश्चात्य संस्कृति से मोह लगभग भंग ही हो गया है छात्रों ने अपने संस्थान के दीक्षांत समारोह में इस बार पाश्चात्य संस्कृति को बाय-बाय कर ही दिया। आईआईटी के 57वें दीक्षांत समारोह में भारतीय सभ्यता पाश्चात्य संस्कृति पर भारी पडती दिखायी दी। कानपुर आईआईटी के दीक्षांत समारोह में पहली बार नहीं किसी को भी ब्लैक गाउन पहने नही देखा गया, गेस्ट और प्रोफेसरों ने कोट और पहाड़ी टोपी पहनकर भारतीय सभ्यता का प्रचार प्रसार किया। आईआईटी कानपुर ने एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वादेशी चीजों के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं तो वहीं, आईआईटी के प्रोफेसरों ने भी इस बार कुछ अलग किया और अपनी भारतीय सभ्यता को आगे लाने का काम किया है। इस बार समारोह में पहली बार ऐसा हुआ है जब गोल्डन गाउन के बजाए भारतीय सभ्यता वाला कोट व पहाड़ी टोपी पहनकर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व सभी प्रोफेसरों ने हिस्सा लिया है। पहले कुछ इस तरह की होती थी ड्रेस। यह फोटो आईआईटी के 57वें दीक्षांत समारोह की है। पहले कुछ इस तरह की होती थी ड्रेस। यह फोटो आईआईटी के 56वें दीक्षांत समारोह की है। संस्थान ने खुद तैयार कराया कोट प्रो. शलभ ने बताया कि यह गाउन कम एक प्रकार का भारतीय संस्कृति वाला कोट है। इसके अलावा पहाड़ी टोपी भी ड्रेस का हिस्सा थी। खास बात यह है कि इन दोनों की डिजाइन व सिलाई का काम संस्थान में ही किया गया है। संस्थान के फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रो. राज ऋषि और प्रो. शतरूपा राय ने कोट व टोपी को डिजाइन किया था। इसके बाद संस्थान में संचालित रोजी शिक्षा केंद्र में महिलाओं को इसकी सिलाई के लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद इस कोट व टोपी को तैयार किया गया है। गांव की गरीब महिलाओं को मिल रहा रोजगार उन्नत भारत अभियान के अंतर्गत संस्थान में संचालित रोजी शिक्षा केंद्र में आसपास स्थित गांव की गरीब महिलाएं को रोजगार दिया जा रहा है। इस केंद्र में महिलाएं आकर सिलाई का काम सीखती हैं और अपना परिवार चलाती है। सिलाई सीखने के अलावा यहां पर जो भी काम आता है उससे उन्हें रोजगार भी मिलता है।