पिता हमारे पूज्य हैं, छाँव बने हर बार|
झुके सदा सम्मान में, हम सबका ये प्यार||
जीवन सींचें स्नेह से, सिखलाते हर बात|
पिता सम्मान सब करें, यही धर्म और नात||
संघर्षों की राह पर, कर्म दिये वो साध|
चरणों में ही पिता के, मिलते सुख अगाध||
धर्म संस्कार ज्ञान दें, समझाते हैं कर्म|
पिता सम्मान कीजिये, जीवन उत्तम मर्म||
जीवन का पथ है कठिन, चलते पितु के संग|
कष्ट सभी वो हर लिए, देकर हमें उमंग||
माता का गुणगान हो, पिता त्याग को भूल|
जीवन पथ पर पितु चले, चुभते कितने शूल||
मात पिता ममता जहाँ, कैसे लगता मोल|
उनके आशीर्वाद से, जीवन है अनमोल||
धरती पर भगवान का, पिता रूप पहचान|
उनके चरणों में सदा, झुककर करते मान||
संजीव कुमार भटनागर
गंगा दशहरा
गंगा मैया का दिवस, बना दशहरा पर्व,
पावन धारा में बहे, पुण्य का हर वर्व।
दसों पाप हरने चली, आईं गंगा मीत,
पावन धारा स्नान से, मिटे सभी अनीत।
काशी हरिद्वार तक, गूंजे गंगा राग,
दिवस दशहरा का पुण्य, मिले सभी को भाग।
स्नान करें जो भक्तजन, गंगा जल में आज,
पाप हरें, सुख दें सदा, गंगा का ये काज।
गंगा की महिमा बडी, पावन उसकी धार,
करे दशहरा के दिवस, सबका वो उद्धार।
संजीव भटनागर