संवाददाता।
कानपुर। नगर की लोकसभा सीट भले ही वीआईपी श्रेणी में न आती हो, लेकिन हर चुनाव में चर्चाओं में जरूर रहती है। बीते 33 वर्षों से भाजपा कानपुर सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी ही उतार रही है, वहीं कांग्रेस जातीय समीकरण को दरकिनार करती आई है। फिर भी 4 बार सीट उसके कब्जे में रही। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद बीते 10 वर्षों से कानपुर सीट भाजपा के कब्जे में है। 2024 लोकसभा चुनाव के पत्ते खुल चुके हैं। भाजपा ने रमेश अवस्थी पर दांव खेला है। कांग्रेस ने आलोक मिश्रा को प्रत्याशी बनाया, वहीं राहुल भदौरिया को मैदान में उतारा है। तीनों ही प्रत्याशी पहली बार लोकसभा के चुनावी रण में हैं। वर्ष-1991 में पहली बार भाजपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी के रूप में जगत वीर सिंह द्रोण को उतारा था। इसके बाद 1999 में कांग्रेस के टिकट पर श्रीप्रकाश जायसवाल सांसद बने। भाजपा की बात करें तो बीते 33 वर्षों से ब्राह्मण प्रत्याशी पर ही भरोसा जता रही है। 1991 के बाद वर्ष-2014 में मुरली मनोहर जोशी और 2019 में सत्यदेव पचौरी को पार्टी ने टिकट थमाया था। बीच में एक बार 2009 में सतीश महाना को मौका दिया गया था। लेकिन वे हार गए थे। इस बार भी पार्टी ने ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर रमेश अवस्थी को मैदान में उतारा है। बता दें कि सपा एक बार भी इस सीट से जीत दर्ज नहीं करा सकी है। वहीं कांग्रेस से 40 साल पहले ब्राह्मण प्रत्याशी नरेश चंद्र चतुर्वेदी ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस पार्टी की तरफ से कानपुर सीट पर 44 साल पहले 1980 में आरिफ मोहम्मद खान सांसद बने थे। वे मौजूदा समय में केरल के राज्यपाल हैं। कांग्रेस ने 28 साल पहले भूधर नारायण मिश्र को ब्राह्मण प्रत्याशी के तौर पर उतारा था। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा ने रमेश अवस्थी को चुनावी रण में उतारा है। ये इनका पहला चुनाव है। इससे पहले वे कभी कोई चुनाव नहीं लड़े। लेकिन भाजपा की कार्यसमिति के सदस्य जरूर रहे। वहीं कांग्रेस से ब्राह्मण चेहरे के रूप में आलोक मिश्रा को टिकट थमाया है। बीते 33 वर्षों में पहली बार है कि दो ब्राह्मण प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस से आमने-सामने हैं। वहीं बसपा से राहुल भदौरिया भी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस से दोनों ही ब्राह्मण प्रत्याशियों के आने के बाद ब्राह्मण वोट बैंक हर हाल में बंटेगा। इसके बाद मुकाबला बेहद रोचक हो गया है। अब इस सीट पर अब मुस्लिम ही निर्णायक माने जा रहे हैं। क्योंकि उनकी आबादी करीब 4 लाख है। सीट पर 3.75 लाख SC-ST और 3 लाख OBC वोटर हैं। आर्यनगर, कैंट और सीसामऊ विधानसभा में मुस्लिम आबादी काफी है। इन तीनों ही सीट पर सपा के विधायक हैं। कांग्रेस और सपा गठबंधन होने पर मुस्लिम वोटर एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में वोट कर सकते हैं। हालांकि मुस्लिमों को रिझाने के लिए भाजपा ने यहां खूब मेहनत की है। आलोक मिश्रा शिक्षा जगत का बड़ा नाम माने जाते हैं। शहर में उनके कई DPS स्कूल हैं। लंबे समय से वे लोकसभा सीट पर अपनी उम्मीदवारी ठोंक रहे थे। आखिरकार, पार्टी ने उनको टिकट दे दिया। आलोक लंबे अरसे से राजनीति में सक्रिय हैं। क्राइस्ट चर्च कालेज में छात्रसंघ महामंत्री रहे। उन्हें वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद और गुलाम नबी आजाद का करीबी समझा जाता है। इसके अतिरिक्त वर्ष-2012 के विधानसभा चुनाव में आलोक मिश्रा कानपुर की कल्याणपुर विधानसभा सीट से किस्मत आजमा चुके हैं। इस बार ये उनका पहला लोकसभा चुनाव है। पार्टी मान रही है कि आलोक ब्राह्मण वोटर्स में सेंध लगाएंगे। सपा गठबंधन के चलते उन्हें मुस्लिम वोट भी मिलेगा। इसके बाद आलोक मजबूत स्थिति में नजर आ सकते हैं। भाजपा का वोट शेयरिंग 50% से ज्यादा की रही है। पार्टी ने उन्हें इसलिए भी मैदान में उतारा है, क्योंकि वह ब्राह्मण-मुस्लिम-यादव वोट बैंक के सहारे वोट शेयरिंग के अंतर को कम कर सकते हैं। कानपुर से लेकर दिल्ली तक मैंगो पार्टी करने के लिए चर्चाओं में रहने वाले रमेश अवस्थी कानपुर से टिकट पाने में कामयाब हो गए। इससे पहले वे बांदा से टिकट की दौड़ में थे। राजनीतिक सूत्रों की माने तो मैंगो पार्टी के जरिए ही उन्होंने दिल्ली में बड़े नेताओं में पैठ बनाई और टिकट की दौड़ में आ गए। बांदा से टिकट नहीं मिला तो कानपुर में सक्रिय हो गए। रमेश अवस्थी वर्ष 1990 में कानपुर विश्वविद्यालय से सम्बन्धित दूसरे सबसे बड़े कॉलेज बद्री विशाल डिग्री कॉलेज में छात्र संघ अध्यक्ष के पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी के रूप में भारी मतों से जीत चुके हैं। पचौरी और महाना गुट की लड़ाई को देखते हुए पार्टी ने बीच का रास्ता अपनाते हुए रमेश अवस्थी को टिकट थमा दिया। हालांकि इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती दोनों ही नेताओं को साधने की भी है। रमेश अवस्थी इससे पहले कानपुर मैंगो पार्टी करने को लेकर चर्चाओं में जरूर रहे, लेकिन कानपुर में राजनीतिक रूप से कभी सक्रिय नहीं रहे। ये इनका पहला लोकसभा चुनाव है। इससे पहले इन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। रमेश अवस्थी हाल ही में कानपुर में नया मकान बनाया है। इससे पहले वे बांदा लोकसभा से टिकट मांग रहे थे। ब्राह्मण सीट पर यहां संभावनाएं तलाशते हुए यहां राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए। वे सहारा मीडिया ग्रुप में भी बड़े पदों पर रहे। टिकट की दौड़ में आने से पहले उन्होंने सहारा ग्रुप के सभी पदों से इस्तीफा भी दे दिया था।