संवाददाता।
कानपुर। आज़ादी की नींव में क्रांति का बिगुल फूकने वाली धरती पर शनिवार शाम को नगर के बिठूर स्थित क्षेत्र ब्रह्मावर्त घाट पर गंगा आरती के बाद बिठूर महोत्सव की शुरुआत हुई। शाम ढलते ही मंच पर गायक कैलाश खेर ने अपने धमाकेदार गीतों से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह ने अतिथियों के स्वागत उदबोधन के बाद बिठूर महोत्सव के बारे में बताया कि उत्तर प्रदेश के कानपुर जनपद का बिठूर महत्वपूर्ण स्थान है, जिसकी एक अलग पहचान है,बिठूर ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पौराणिक व धार्मिक का केंद्र है। बिठूर महोत्सव का आयोजन बिठूर धरोहर, पर्यटन और इतिहास, माँ गंगा के प्रति समर्पण की थीम के साथ भव्य रूप से आयोजित किया जा रहा है। ऊर्जा मंत्री ने बताया कि 1857 की क्रांति व देश को आजाद कराने में बिठूर व मथुरा का विशेष योगदान रहा है, आज का आयोजन संस्कृति व संस्कार को बढ़ाने के लिए हो रहा है। विधायक अभिजीत सिंह सांगा ने कहा कि बिठूर के साथ-साथ आज पूरे देश मे महोत्सव का माहौल है, जब से अयोध्या में रामलला विराजमान हुए है, बिठूर महोत्सव का आयोजन इसीलिए किया जा रहा है कि लोगों के दिलो में बिठूर के प्रति ऐसा ही उत्साह बना रहे, और युवा बिठूर के ऐतिहासिक, धार्मिक व पौराणिक महत्व को जान सके तथा संस्कृति व संस्कार को आगे बढ़ा सकें।
कार्यक्रम में प्रस्तुति
गायक कैलाश खेर ने ” पिया के रंग-रंग दी ओढ़नी”, ” क्या कभी अम्बर से सूर्य बिछड़ता है, क्या कभी बिन बाती दीपक जलता है”, “कौन है वो कौन है वो, कहा से वो आया”, ” तेरे नाम से जी लू, तेरे नाम से मर लू, तेरे नाम से सदके से ऐसा कुछ कर जाऊ”, “जय-जय जयकार, स्वामी देना साथ हमारा”, ” तेरी दीवानी”, ” बन-ठन के गोरा कहा चली”, “अल्लाह के बंदे हसले, जो भी होगा कल आएगा”, ” बम-बम-बम लहरी”, गीतों को गाकर शानदार प्रस्तुति दी।
बिठूर का इतिहास
बिठूर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, विशेषकर 1857 के भारतीय विद्रोह निकटता से जुड़ा रहा है। यह स्थान एक समय में झाँसी की रानी, लक्ष्मी बाई सहित विद्रोह के कई प्रमुख प्रतिभागियों का घर था। ब्रिटिश राज के दौरान, बिठूर संयुक्त प्रांत में कानपुर जिले का हिस्सा हुआ करता था। पेशवाओं में से अंतिम , बाजी राव द्वितीय को बिठूर में निर्वासित कर दिया गया था। उनके दत्तक पुत्र नाना साहब ने इस शहर को अपना मुख्यालय बनाया। 19 जुलाई 1857 को जनरल हैवलॉक ने बिठूर पर कब्जा कर लिया। बाद में शहर पर अंग्रेजों ने हमला किया और कब्जा कर लिया, जिन्होंने 300 से अधिक ब्रिटिश पुरुषों, महिलाओं और पुरुषों के क्रूर नरसंहार के प्रतिशोध में नाना साहब के महल और शहर के मंदिरों को तोड़ दिया। वे बच्चे जिन्हें कानपुर की घेराबंदी के दौरान भारतीय विद्रोहियों के एक समूह ने युद्धविराम के वादे के साथ कानपुर में अपनी सुरक्षा से बाहर कर दिया था । क्रोधित ब्रिटिश सैनिकों ने भी बिठूर के नागरिकों के खिलाफ कई प्रतिशोध किए, जिनमें विद्रोह में शामिल होने का संदेह वाला कोई भी व्यक्ति शामिल था। बिठूर में कई निजी घरों को भी लूटा गया और जला दिया गया। सम्राट उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए यहां तपस्या की थी। भगवान इतने प्रसन्न हुए कि वे न केवल प्रकट हुए बल्कि उन्हें एक दिव्य वरदान भी दिया – एक तारे के रूप में सदैव चमकने का। नगर का यह स्थान ध्रुव टीला बताया गया है।