July 3, 2025

 पार्टी हितों की तुलना में हमेशा निजी हितों को दी तरजीह।

दूसरे सियासी नेताओं के अंदरूनी दरबार तक है पहुंच।

स्वतंत्र शुक्ला।

कानपुर। आस्था, निष्ठा, भरोसा और विश्वास, इन नामों का अब देश की सियासत में कोई स्थान नहीं रह गया है। ऐसे-ऐसे राजनीतिक नेता देखने को मिल रहे हैं जो मलाई खाने तक किसी दल में रहे, लेकिन वक्त बदलते देखा तो आनन-फानन में पाला बदल लिया। पलक झपकते ही उनके सुर बदल जाते हैं। राजनीतिक नेताओं को बदला निकालने का, आलाकमान को धता बताने का सबसे अच्छा अवसर होता है। चुनाव। लोकसभा चुनाव क्या आये, आया राम- गया राम का दौर शुरू हो गया। कानपुर से कांग्रेस विधायक रहे अजय कपूर का नाम भी आज ऐसे नेताओं में शुमार हो गया है। कांग्रेस के दुर्दिन देखते हुए उन्होंने नयी दिल्ली में आज भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। सम्भवतः इस सोच के चलते कि भाजपा उन्हें कानपुर से लोकसभा चुनाव का टिकट दे सकती है। एक पुरानी कहावत है कि जहाज डूबने लगता है तो सबसे पहले चूहे ही भागते हैं। यह कहावत अजय कपूर पर सार्थक साबित हो रही है। शहर के कांग्रेस नेताओं में इसकी खासी चर्चा है। दरअसल कांग्रेस विधायक अजय कपूर ने अपनी राजनीतिक जड़ों को मजबूत बनाए रखने के लिए हमेशा कांग्रेस से इतर एक समानान्तर व्यवस्था बनाये रखी, जिसमें कांग्रेसी मौजूद रहते थे पर संगठन नहीं। अजय कपूर फैंस एसोसिएशन ऐसा ही एक संगठन है।

बीते दस बरस में कांग्रेस पार्टी का सत्ता में दखल घटा, इस दौरान अजय सक्रिय रहे लेकिन खुद के लिए। जिसे कांग्रेस ने इग्नोर किया, जो उसे भारी भी पड़ा। पार्टी से इस बारे में कई निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने शिकायतें भेजीं, लेकिन उन्हें अनसुना कर दिया जाता रहा । राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि सत्यदेव पचौरी के सांसद बनने के बाद गोविंद नगर उपचुनाव से उभरी युवा करिश्मा ठाकुर की टिकट के बाद से स्थिति और बिगड़ी। पिछले विधानसभा चुनाव मे

इसी विधानसभा से पूर्व प्रत्याशी शैलेंद्र दीक्षित का दावा था, वो कपूर के करीबी थे। टिकट नहीं मिला तो शैलेंद्र ने पार्टी छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली। 2014 तक भी सब स्मूथ नहीं था । श्रीप्रकाश जायसवाल और कपूर दो केंद्र थे शहर में कांग्रेस के, हालांकि श्रीप्रकाश जायसवाल हमेशा संगठन के साथ चले मगर अजय कपूर की अपनी अलग ही व्यवस्था थी। अजय कपूर को विधानसभा अध्यक्ष का करीबी रिश्तेदार होने का भी हमेशा फायदा मिला किन्तु कांग्रेस ने इसे कभी गम्भीरता से नहीं लिया। अजय कपूर अखिलेश यादव के भी करीबी रहे और इस स्तर पर नजदीकी दिखाई दी कि लगा वह समाजवादी पार्टी से लड़ सकते हैं पिछले चुनाव में, हालांकि हुआ नहीं ऐसा कुछ।

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