कानपुर। 5 विधानसभाओं वाली कानपुर लोकसभा सीट पर इस बार का चुनाव थोडा आश्चर्यजनक परिणाम दे सकता है। छावनी, सीसामऊ ,गोविंदनगर , किदवई नगर और आर्यनगर विधानसभा क्षेत्रों वाली लोकसभा में इस समय तीन क्षेत्रों पर सपा और दो पर भाजपा का कब्ज़ा है। तीन विधानसभाओं में अल्पसंख्य्क वोटरों की तादाद भी अधिक है जिसमे सिर्फ एक लाख मतदाता सिख समुदाय के हैं ,वहीं कानपुर सीट पर गठबंधन ने ब्राह्मण प्रत्याशी को उतारा है और बीजेपी ने भी अपना ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतारा है।जिससे शहर का ब्राह्मण वोट तो दोनों प्रत्याशियों में बटना तय है। इसके साथ ही मुस्लिम मतदाता ज्यादातर सपा और कांग्रेस के पाले में खड़ा दिखाई दे रहा है। जो बीजेपी के लिए मुश्किल साबित कर सकता है और इस चुनाव में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है। कानपुर सीट पर 6 लाख अल्पसंख्यक मतदाता है जिसमे 4 लाख मुस्लिम तो अन्य में जैन, सिख और ईसाई वोटर है जो मिलकर लगभग 6 लाख की संख्या तैयार करते है। लेकिन इस बार चुनाव में हवा और समीकरण कुछ और ही बता रहे है। यूपी में दो बड़े दलों के गठबंधन ने अपनी ताकत झोंक दी है और दो दलों का पार्टी वोट उनके प्रत्याशी को लेना तो तय ही है। इसके साथ बीजेपी के खाते में मुस्लिम वोट की संभावना न के बराबर दिखाई दे रही है। क्योंकि ज्यादातर मुस्लिम मतदाता सपा या कांग्रेस का माना जाता है ऐसे में दोनों दलों के गठबंधन में उन्हें इसका फायदा मिल सकता है।अगर इस चुनाव में सेंट्रलाइज होकर मुस्लिम मतदाता गठबंधन को वोट करता है तो एक बड़ा परिवर्तन होना निश्चित देखा जा रहा है। बीजेपी के लिए टक्कर कांटे की हो जायेगी। क्योंकि बीजेपी ने नए प्रत्याशी पर दांव लगाया है। जो खास चर्चित चेहरा भी नहीं है। ऐसे में टिकट की दावेदारी करने वाले बीजेपी के नेताओं की शहर से लिस्ट भी बहुत लंबी थी और सबको निराशा हाथ लगी। जिससे कुछ नेता नाखुश भी दिखाई दे रहे थे वहीं दो लाख जैन, सिख और ईसाई वोटर पर कौन सा दल सेंधमारी करेगा ये मतदान का दिन ही बताएगा। नगर के 18 लाख मतदाताओं में 6 लाख अल्पसंख्यक अगर गठबंधन के साथ खड़े होते है तो कुल बचे 12 लाख मतदाता और इसमें करीब 4. 50 लाख ब्राह्मण मतदाता है। जो दोनों प्रत्याशियों में बटना तय है। वहीं यादव, पाल, एससी और ओबीसी मतदाता की भी संख्या बड़ी है। लेकिन इसमें से भी यादव ,एससी और ओबीसी वोटर गठबंधन का साथ देंगे या नहीं, ये तो मतदान का दिन और परिणाम की तारीख तय करेगी। लेकिन कानपुर सीट पर सभी प्रत्याशी अल्पसंख्यक वोट का साधने में लगे हुए है और इस जद्दोजहद में बीजेपी सबसे ज्यादा काम कर रही है क्योंकि अल्पसंख्यक वोट बीजेपी की सबसे कमजोर कड़ी है।