आबकारी विभाग के अधिकारियों के कानों में जॅूं तक नही रेंग रही है।
कानपुर। मदिरा जो हमेशा से स्वास्थ्य, सामाजिक स्तर, मनुष्य के व्यक्तिगत विकास के लिये नुकसानदेह ही बताई गई जिसको बिक्री करने से पहले उसपर आबकारी विभाग भी चिह्नित करता है की स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक है। जिसे आज का ज्यादातर युवा तनाव, शौक, के कारण अपनाने में जुटा हुआ है। कारण प्रदेश के आबकारी विभाग और सरकार की अनदेखी कही जाए या फिर विभाग के अधिकारियों की संवेदनहीनता ,सुप्रीम कोर्ट के बनाए गए नियमों और अपनी ही बनाई नियमावली को ताख पर रखने का काम विभाग की ओर से किया जा रहा है। शहर में रिहायशी क्षेत्र में मंदिरों व चिकित्सालयों के आसपास ही अनगिनत मदिरालय चल रहे हैं। नियम होने के बाद भी ज्यादा राजस्व के चक्कर में ऐसे शराब दुकानों को दूर हटाने में आबकारी विभाग गंभीर दिखायी नही दे रहा हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आबकारी नियमों में साफ तौर पर निर्देशित किया है कि मंदिरों व चिकित्सालय के आसपास शराब की दुकानों को न खोला जाए लेकिन यह नियम केवल कागजों पर ही सीमित हैंं। जिले के शहरी क्षेत्र में ज्यादा राजस्व कमाने के चक्कर में आबकारी विभाग अपने ही नियमो की अनदेखी करते हुए शराब की दुकान चलानें के लाइसेन्स साल दर साल बढाकर देता चला आ रहा है। पाँच दर्जन से अधिक शराब दुकाने मंदिरों व चिकित्सालयों के आसपास रिहायशी व सार्वजनिक क्षेत्र में स्थित है और धडल्ले से चल रही है। आमलोग इन शराब दुकानों से परेशान है लेकिन आबकारी विभाग के अधिकारियों के कानों में जॅूं तक नही रेंग रही है। कुछ दुकानों को हटाने की मांग भी की जाती है। लेकिन शराब की दुकानें रिहायशी क्षेत्रों से हटती दिखायी नही पड रही। ऐसे में मंदिरों व चिकित्सालय के आसपास शराब की दुकानें सुप्रीम कोर्ट के नियमों को चिढाने का काम कर रही हैं। जनता को सुप्रीम कोर्ट के बनाए उन निर्देशों के पालन का इन्तजार है कि शहरी क्षेत्र में मंदिर, चिकित्सालय व व्यवसायिक क्षेत्र में स्थित शराब दुकानें कब हटेंगी।
ज्यादा कमाई के लिए रिहायशी क्षेत्र में दुकान लेने के लिए
शराब ठेकेदार ठेका लेते समय शहर के दुकानों पर ज्यादा रूचि लेते हैं। वजह यहां ज्यादा कमाई होती है। इसके लिए शराब दुकान भीड़भाड़ वाले रिहायशी क्षेत्र में रखा जाता है। भले ही आसपास धार्मिक स्थान या चिकित्सालय क्यों न हो। क्योंकि दूर शराब दुकान खोलने पर आमदनी कम होती है। इससे आबकारी विभाग के राजस्व को असर पड़ता है। इसलिए विभाग भी शराब दुकानों को कमाई वाले जगह पर चलाना चाहता है।
आबकारी नियम के तहत शराब के ठेके जारी करते समय शराब दुकान को धार्मिक स्थान, शैक्षणिक संस्थान, हाइवे, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, श्रमिक कालोनी से 50 मीटर दूर रखना है। लेकिन आबकारी विभाग के अधिकारी शराब दुकान हटवाने में रूचि लेने के बजाए इन नियमों का तोड़ निकाल लेते हैं। जिन शिकायतो पर शराब दुकान हटाने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजना चाहिए उसे ही गलत बता देते हैं। बतातें चलें कि देश की शीर्ष अदालत में दाखिल की गयी कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि शैक्षिक संस्थानों, मंदिरों के 500 मीटर के भीतर, और मस्जिदों के साथ अन्य जगहों के 150 मीटर के भीतर शराब की दुकाने नहीं खोली जानी चाहिए। बाद के आदेशों में यह भी कहा था कि यदि शहर की जनसंख्या 20,000 से कम है तो यह दूरी घटाकर 220 मीटर की जा सकती है। यही नही मार्च 2023 में अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर, मस्जिद और शैक्षणिक संस्थान से 150 मीटर के भीतर शराब की दुकानों को हटाने का आदेश दिया था। शहर का आबकारी विभाग इससे पूरी तरह से बेखबर दिखायी दे रही है, क्योंकि शहर की मुख्य सडक हैलट अस्पताल के सामने मन्दिर भी है और चिकित्सालय भी लेकिन मधुशाला आराम से चल रहा है। कुसुम दीक्षित 34050 के नाम से पंजीकृत इस मधुशाला के मालिकों का दबाव नगर के आबकारी विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों पर भी साफ तौर देखा जा सकता है। इस मामले में जिला आबकारी अधिकारी प्रगल्भ लवानिया से बातचीत करने की कोशिश की गयी तो जानकारी प्राप्त हुई वो चुनाव में व्यस्त है।