भूपेन्द्र सिंह
कानपुर। विश्व क्रिकेट के पटल पर बांग्लादेश ही ऐसी पहली टीम होगी जिसके टेस्ट मैच का गवाह ग्रीनपार्क का ऐतिहासिक मैनुअल कम इलेक्ट्रानिक स्को्र बोर्ड नही हो सकेगा। ग्रीनपार्क में इससे पहले विश्व क्रिकेट की सभी बडी टीमों के मैच का गवाह कानपुर ग्रीनपार्क के स्टेडियम में स्थापित स्कोर बोर्ड रहा है। जिसकी प्रशंसा यहां पर खेल चुकी सभी देश की टीमों के कप्तान और उनका प्रबन्धतन्त्र कर चुका है । यही नही इस स्कोरबोर्ड की प्रशंसा आईसीसी के पूर्व चेयरमैन व दक्षिण अफ्रीकी विकेट कीपर डेव रिचर्डसन ने भी की थी। साल 2000 में टेस्ट टीम का दर्जा पायी बांग्लादेश की टीम नगर में पहली बार खेलने आ रही है। कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में आगामी 27 सितम्बर से 1 अक्टूबर के बीच भारत और बांग्लादेश की टीम आमने-सामने होगी। स्टेडियम में खेले जाने वाले 24वें अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच के लिए तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच गईं हैं।ग्राउंड से लेकर दर्शकों की बैठने की व्यवस्था व एंट्री का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया गया है। फ्लड लाइट से लेकर ब्राडकास्टर के कैमरों के सेटअप की भी रिहर्सल हो चुका है,लेकिन इस मैच में ग्रीन पार्क में जो अधूरा-अधूरा नजर आएगा, वह होगा ऐतिहासिक मैनुअल स्कोर बोर्ड का ना होना।दरअसल,ग्रीन पार्क में होने वाले बांग्लादेश दौरे के दूसरे टेस्ट मैच में सिर्फ डिजिटल स्कोर बोर्ड का प्रयोग किया जाएगा। .जबकि अभी तक के अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैचों में डिजिटल के साथ-साथ मैनुअल स्कोर बोर्ड का भी इस्तेमाल होता रहा है। .मैच के दौरान यह स्कोर बोर्ड भी एक आकर्षण का केंद्र रहता था।.इसे दुनिया का सबसे बड़ा मैनुअल स्कोर बोर्ड माना जाता रहा है।.इसे 1952 में एसएम बशीर व जगजीत सिंह ने बनाकर तैयार किया था,जबकि 1957 से अंतरराष्ट्रीय मैचों में इसका प्रयोग पहली बार किया गया था।ग्रीन पार्क के स्कोर बोर्ड को ऐसे ही ऐतिहासिक स्कोर बोर्ड नहीं कहा जाता है.इस स्कोर बोर्ड में दोनों टीम के खिलाड़ियों के नाम के साथ साथ अंपायर के नाम भी लिखे जाते थे।इसके अलावा रन रेट और लाइव स्कोरिंग की सुविधा भी मौजूद थी। इसे संचालित करने के लिए करीब 80 लोगों की आवश्यकता पड़ती थी। ग्रीनपार्क में क्रिकेट प्रेमियों को आखिरी बार भारत बनाम इंग्लैंड के बीच हुए टी-20 मैच में देखने को मिला था। यह दुनिया का इकलौता व अनूठा मैनुअल स्कोर बोर्ड भी रहा। इसकी स्थापना वर्ष 1957 में हुई और पहली बार 12 से 17 दिसंबर 1957 को भारत और वेस्टइंडीज के बीच टेस्ट मैच में इसका इस्तेमाल किया गया था। पूर्व स्कोरर सौरभ चतुर्वेदी के मुताबिक कम्प्यूटर की तरह काम करने वाले एक मात्र बचे इस बोर्ड में मैच के दौरान जिस खिलाड़ी के पास बॉल जाती थी, उस खिलाड़ी के नाम के आगे वाली लाइट जल जाती थी। आज स्कोर बोर्ड मैदान के एक कोने में कबाड़ की तरह छोड़ दिया गया। बोर्ड की दुर्दशा पर यूपीसीए के पदाधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।इस मैनुअल स्कोर बोर्ड की स्थापना के पहले ग्रीनपार्क में वर्ष 1952 में एक टेस्ट मैच भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ था। इस मैच के दौरान ही इसकी जरूरत महसूस हुई। इसे बनाने का जिम्मा शहर के रहने वाली सरदार जगजीत सिंह को दिया गया। उनकी मौत के बाद वर्ष 1972 से उनके बेटे सरदार हरचरन सिंह को इसका जिम्मा संभाले रहे। 1957 से प्रयोग में लाया जा रहा यह दोनो स्कोर बोर्ड साल 2015 में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच होने वाले पहले एकदिवसीय मैच के दौरान अंतिम बार संचालित किये गए थे। जबकि साल 2017 में इंग्लै्ण्ड के खिलाफ टी –टवेन्टी मुकाबले में एक स्कोर बोर्ड को प्रयोग में लाया गया था। इसके बाद के सभी मुकाबलों में इलेक्ट्रानिक स्कोर बोर्ड ही प्रयोग में लाए गए। कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छाए रहे ग्रीनपार्क की खूबसूरती के साथ मैनुअल स्कोर बोर्ड भी क्रिकेटरों के दिल में खास जगह बनाए था। सालों तक कई अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों का गवाह रहा यह स्कोर बोर्ड ग्रीनपार्क में इतिहास ही बन गया है। मौजूदा समय संरक्षण के अभाव में स्कोर बोर्ड तिरस्कृत होकर किनारे पड़ा है। हालांकि अपने समय में खूबियों के चलते खास चर्चित रहा और इसका संचालन करना बेहद कठिन होता था। साल 2017 के बाद से स्कोभर बोर्ड के अवशेष को यूपीसीए ने संभालकर रखने की कवायद तक नही की।