May 23, 2025

—त्योहारों के महत्व उनके वैज्ञानिक कारणों और सनातनी परम्परा के संस्कार न देना

स्‍वतन्‍त्र शुक्ला / भूपेन्द्र सिंह 

कानपुर। बढ़ते आर्थिक युग और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने त्योहारों का असली मज़ा ही छीन सा लिया है, यदि दस से पंद्रह प्रतिशत वो लोग जो शुद्ध खांटी परम्पराओं से जुड़े है उन्हें छोड़ भौतिकता वादी सोच वाले लोग अब त्योहारों पर सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें और स्टेटस पोस्ट करने में ज्यादा समय बिताते हैं, बजाये कि त्योहारों को मनाने में। यही कारण है कि होली जैसे त्यौहार पर भी न तो रंगों की चमक ही दिखायी पड रही और न ही गुझिया की महक सूंघने को मिल रही। होली जैसा पर्व भी सोशल मीडिया की पूरी तरह तरह से भेंट चढता दिखायी दे रहा है। जिन युवा हाथों में रंग से भरी पिचकारी और गुलाल हुआ करता था आज उन्ही हाथों में केवल मोबाइल ही दिखायी पड रहा है। त्यौंहारों को उसके पारम्पारिक अन्दाज में मनाने की प्रक्रिया और रिवाज पूरी तरह से सिमटे दिखायी दे रहें हैं। जिन अबोध बच्चों  के हाथों में रंग और पिचकारियां हैं वह चेहरे रंगने के लिए व्यक्ति ढूंढते दिखायी दे रहे। 5 से लेकर 12 वर्ष के बच्चों को होली खेलने के लिए भी अपने घरों के बाहर कुछ ही लोग राह चलते दिखायी पड़ जाते थे उनपर, रंग फेंक उन्हें रंगने की कोशिश करी जा रही थी। महिलाओं और पारिवारिक सदस्यों में छुटटी मनाते लोगों की संख्या अधिक ही रही। सोशल मीडिया पर समय बिताने से त्योहारों के लिए समय कम हो जाता है, जिससे लोग त्यौहारों की तैयारियों और समारोहों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पाते।सोशल मीडिया पर त्योहारों को सिर्फ तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से देखना, वास्तविक अनुभवों की जगह नहीं ले सकता है। त्यौहारों के अत्यधिक व्यावसायीकरण के चलते लोग सोशल मीडिया पर अधिक फोकस करने को आतुर रहते  हैं। उच्‍च और सााधारण पारिवारिक के सदस्‍य अर्थयुग में अपनी महत्‍ता बताने के मामले में त्‍यौहारों को पीछे छोड़ आये है , वह अब अक्सर इस प्रतिस्पर्धा में देखे जा सकते हैं जिसमें केवल तस्‍वीरों और वीडियो का आदान प्रदान ही परम्‍परा बन जाता है। इस प्रक्रिया से भी त्‍यौहार मनाने के मायने ही बदल जाते हैं कौन सबसे अच्छी तस्वीर पोस्ट कर सकता है, सबसे अच्छा पहनावा पहन सकता है या सबसे शानदार पार्टी कर सकता है। कभी-कभी इसमें त्यौहारों का सार ही खो जाता है। सोशल मीडिया पर त्यौहार मनाने से धरातल में सांस्कृतिक प्रस्तुति नगण्य होती जा रही है। सोशल मीडिया पर समय बिताने से परिवार के सदस्यों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय कम हो जाता है, जिससे त्यौहारों का आनंद कम हो जाता है। होली परंपरागत रूप से, शारीरिक रूप से एकत्रित होकर, भोजन, संगीत और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता था। हालाँकि,फेसबुक,इन्‍स्‍टाग्राम,टिवटर,और यू टयूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की शुरु होने से लोगों के इन आयोजनों से जुड़ने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। जिसके चलते त्यौहार और उनकी परम्परायें अपने धरातल से पूरी तरह से हट चुकी हैं जिनके स्थान पर सबकुछ अब सोशल मीडिया पर पनपती और विस्तृत होते दिखायी दे रहे हैं। सूचनांए प्रेषित करने के उददेश्यु से प्रारम्भ किया गया सोशल मीडिया का प्रयोग आज अपने उद्देश्य को भूल लोगों को उनके पारंपरिक जीवन शैली से दूर ले जाने में सफल हो चुका है। दरअसल, सोशल मीडिया की भूमिका सामाजिक समरसता को बिगाड़ने और सकारात्मक सोच की जगह समाज को बाँटने वाली सोच को बढ़ावा देने वाली हो गई है। भारत में नीति निर्माताओं के समक्ष सोशल मीडिया के दुरुपयोग को नियंत्रित करना एक बड़ी चुनौती बन चुकी है एवं लोगों द्वारा इस ओर गंभीरता से विचार भी किया जाना चाहिये सोशल मीडिया के प्रयोग और बढते प्रचलन से त्यौहारों को मनाने का न ही वो दौर रह गया है और न पुराने समय जैसा दृश्य नजर आता है जैसे कि पहले टोलियों के रूप में लोग होली जैसे पर्व को मनाने के लिए एक दूसरे के क्षेत्र में जाते-आते देखे जाते थे। अब तो सडकों पर भी सन्नाटा पसरा नजर आता है। शहर में जहां होलिका दहन से लेकर अनुराधा नक्षत्र तक लोगों के हाथों से रंग नही छूटता था आज मोबाइल में सोशल मीडिया की धमक बढ़ने के बाद रंगहीन हो चुका दिखायी दे रहा है। अब तो रंगीन त्‍यौहार भी पूरी तरह से सोशल मीडिया की गिरफ्त में आ चुके हैं जिससे परम्‍परागत त्‍यौहारों से लोगों की दूरियां बढती ही जा रही है। जिनका एक बड़ा मूल कारण यह भी है कि पहली पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को त्योहारों के महत्व उनके वैज्ञानिक कारणों और सनातनी परम्परा के संस्कार न देना।