May 23, 2025

आ स. संवाददाता 

कानपुर।  बौसर गांव में स्थित मां काली का मंदिर सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के आठवें दिन श्रद्धालु सुबह से ही पूजा की थाली लेकर मंदिर पहुंच रहे थे। पूरा मंदिर परिसर जय माता दी के जयकारों से गुंजायमान था।
मंदिर के इतिहास में एक रोचक कहानी छिपी है। स्थानीय निवासी कपिल के अनुसार, सैकड़ों साल पहले यहां घना जंगल था। एक दिन चैत्र-बैशाख की दोपहर में कुछ ग्रामीण पीपल के पेड़ के नीचे सो रहे थे। उन्हें सपने में मां काली ने दर्शन देकर बताया कि पेड़ में उनकी मूर्ति छिपी है। जब ग्रामीणों ने पेड़ की सतह को खोदा, तो वहां से मूर्ति मिली।
शुरुआत में मूर्ति को पेड़ के पास मिट्टी की मठिया में स्थापित किया गया। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का निर्माण हुआ। करीब 70 साल पहले यहां के पीपल के पेड़ से एक बरगद का पेड़ भी उग आया।
यह मंदिर आज गांव की कुल देवी का स्थान बन चुका है। यहां मुंडन और छेदन जैसे धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। आसपास के गांवों और अन्य जनपदों से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए यहाँ आते हैं। मान्यता है कि मां काली यहां आने वाले हर भक्त की मन्नत पूरी करती हैं।

मंदिर के बेहद पुराना हो जाने के बाद वर्ष 1963 में बौसर गांव के रहने वाले दुर्गाप्रसाद व उनकी पत्नी स्वर्णा देवी व पुत्र मातादीन ने मंदिर में काली माता की मूर्ति स्थापित कराई गई थी। बैशाख की परेवा को यज्ञ करके भंडारे का आयोजन किया जाता है। यहां पर भक्त जवारा भी निकालते है। इस मंदिर के पास ही हनुमान जी की भी मूर्ति स्थापित है।