
संवाददाता
कानपुर। नगर के 250 साल पुराने श्री जगन्नाथ जी मंदिर की कहानी किसी चमत्कारी घटना से कम नहीं है । जगन्नाथ पुरी से लाई गई मूर्ति एक वृद्ध महिला के द्वारा यहां रख दी गई और उसके बाद लाख कोशिश के बाद भी वह मूर्ति उस स्थान से नहीं हिली । इसके बाद इसी स्थान पर श्री जगन्नाथ जी का बाई जी के मंदिर के नाम से मंदिर बनाया गया ।
कानपुर के जनरलगंज स्थित श्री जगन्नाथ जी का बाई जी के नाम से मंदिर है। यह मंदिर ढाई सौ साल पहले बनाया गया था। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं की जैसा उनके बुजुर्गों ने बताया है की 250 साल पहले एक वृद्ध महिला जिनका नाम बाई जी था। वह राजस्थान से जगन्नाथपुरी दर्शन करने गई थी और वहां से भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति लेकर अपने घर वापस राजस्थान जा रही थी। रास्ते में जगह-जगह विश्राम करते हुए वृद्ध महिला राजस्थान जा रही थी। एक रात वह विश्राम के लिए नगर के जनरल गंज इलाके में रुकी,, उस वक्त यहां पर घना जंगल हुआ करता था।
रात्रि विश्राम के बाद जब वह सुबह उठी और फिर से अपने घर जाने के लिए यात्रा शुरू करनी चाही तो उन्होंने श्री भगवान जगन्नाथ जी की मूर्ति को उठाया लेकिन मूर्ति नहीं उठा सकी । वह काफी परेशान हुई, प्रयास करती रही की मूर्ति को वह अपने घर ले जा सके। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और वह फिर वहीं रुक गई। रात्रि के समय उन्हें स्वप्न आया और भगवान ने उनसे इस स्थान पर मंदिर बनवाने को कहा। इसके बाद इसी स्थान पर वृद्ध महिला बाई जी ने मंदिर का निर्माण करवाया । इसीलिए इस मंदिर का नाम बाई जी श्री जगन्नाथ मंदिर पड़ गया।
कानपुर शहर की जनरलगंज में सबसे पहले जगन्नाथ जी का बाई जी मंदिर बना था । इसके बाद इसी स्थान से 100 कदम की दूरी पर 210 साल पहले भगवान श्री जगन्नाथ जी का बिरजी भगत मंदिर बनाया गया। इस मंदिर को बृजलाल ओमर ने निर्मित कराया था। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां भगवान जगन्नाथ जी की अष्टधातु की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है।
कानपुर में रथ यात्रा दो दिन निकाली जाती है। प्रथम दिवस पर बाई जी मंदिर की रथ यात्रा निकलती हैं और द्वितीय दिवस पर बिरजी भगत मंदिर की रथ यात्रा निकल जाती है। बिरजी भगत मंदिर से ही कुछ ही कदम की दूरी पर एक तीसरा मंदिर 80 साल पहले बनवाया गया । जिसे उमा जगदीश श्री जगन्नाथ मंदिर के नाम से लोग जानते हैं।
कानपुर की रथयात्रा जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा के बाद सबसे प्राचीन यात्रा है। मंदिर के महंत ने बताया की सबसे पहले जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा शुरू हुई थी। उसके बाद कानपुर में और तीसरे नंबर पर अहमदाबाद में यात्रा शुरू की गई थी। उन्होंने ने यह भी बताया कि तीनों ही यात्रा का अपना अलग-अलग स्वभाव है। भक्तों की आस्था के साथ यात्रा में होने वाला प्रदर्शन और आकर्षण अलग है। पुरी की रथ यात्रा में लोग रथ को खींचते हैं। इसी तरह से अहमदाबाद की रथयात्रा में हाथी घोड़ा से शक्ति का प्रदर्शन होता है। तो उसी तरह से कानपुर की रथ यात्रा में लोग अलग तरह के संगीत के ऐसे संसाधनों का प्रयोग करते हैं,जो अपने आपमें अनोखा है। पूरी रथ यात्रा में संगीत की धुन बजाते हुए निकलने वाले 18 मंडल हिस्सा लेते हैं।
जगन्नाथ जी की यात्रा में शामिल होने वाले 18 मंडल संगीत की धुन को कटोरी,चम्मच, थाली और मंजीरा बजाकर नृत्य करते हुए यात्रा के साथ निकलते हैं। उसकी यह धुन भक्ति संगीत के साथ अलग ही रस प्रस्तुत करती है।
कानपुर की जगन्नाथ जी की यात्रा और मंदिर से जुड़े हुए सदस्यों में दिलीप गुप्ता,रामकुमार गुप्ता ,नीरज खन्ना, सत्येंद्र अग्रवाल, राजेश गुप्ता ,छोटेलाल गुप्ता ,नंदकिशोर गुप्ता, उत्कर्ष गुप्ता, भरत लाल गुप्ता, हर्षित गुप्ता, पुष्कर गुप्ता रथ यात्रा की तैयारी और मंदिर की सेवा में 15 दिन पहले से ही जुट जाते है।