आ स.संवाददाता
कानपुर। आतिशबाजी के निर्माण में प्रयोग होने वाले मैटिरियल तांबा,एल्युमिनियम,सल्फर डाइआक्साइड, पोटेशियम नाइट्रेट,परक्लोरेट के दामों में जबरदस्त उछाल के चलते दीपावली पर पटाखें छुडाकर आसमान को सतरंगी करने वालों का सपना भी महंगा होगा। आतिशबाजी उपकरणों पर बीते साल भीतर 30 से 40 प्रतिशत कीमतों में वृद्धि के चलते आसमानी पटाखों को उडने वाले पर ही मिल गए हैं जो बिना किसी रोक-टोक के हवा में उडते दिखायी दे रहें हैं। वही सुरक्षा के दृष्टिकोण से प्रशासन ने आतिशबाजी के कारोबार पर काफी सख्ती बढ़ा दी है। जिसका असर आतिशबाजी की कीमतों पर भी दिखायी पड रहा है। दीपावली के पर्व पर आतिशबाजी करने वालों को इस बार महंगाई के चलते आसमानी पटाखों को छुडाने वाले खरीदने पर विचार करने पर विवश हो गए हैं। इस व्यवसाय में लंबे समय से काम कर रहे आतिशबाज के मुताबिक वैसे तो हर साल आतिशबाजी की रेट में इजाफा होता है, लेकिन पिछले दो सालों में काफी ज्यादा बदलाव आया है। पिछले साल की तुलना में इस बार आतिशबाजी 30 से 40 प्रतिशत महंगी हो गई है। यानी कि जो पटाखा बीते साल 50 रुपए का था वह इस बार 70 से 80 रुपए का मिल रहा है। इसके अलावा अन्य आइटमों की रेट भी बढ़े है। इसके बावजूद लोग आतिशबाजी खरीदने में कोई कंजूसी नहीं करते। क्योंकि खुशी और उल्लास का यह त्योहार साल में एक बार आता है। जिसे सभी पूरी मन से मनाना चाहता हैं।स्थानीय स्तर पर आतिशबाजी निर्माण करने वालों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारी राजू के मुताबिक वर्तमान में जो आतिशबाजी निर्माण का काम कर रहे हैं, वह वर्षों पुराने हैं। कुछ का निधन हो चुका है नया व्यक्ति इस काम को नहीं सीखना चाहता। इसलिए आतिशबाजी बनाने वालों की संख्या कम हो रही है। आतिशबाजी के शौकीन लोग ज्यादातर ऐसे पटाखों पसंद करते हैं, जिसकी आवाज बहुत तेज हो। इसी को ध्यान में रखते हुए आतिशबाजी बनाने वाले कारीगर पटाखों तैयार करते हैं। सैफी रसूल अराफात आतिशबाज के मुताबिक इस बार मार्केट में सबसे तेज धमाका करने वाला पटाखा मुर्गा छाप सुतली बम है इसकी कीमत पिछली बार 20 रुपए थी जो इस बार बढकर 40 रुपए के आसपास पहुंच गए हैं इसके अलावा छोटे बच्चों को ध्यान में रखकर भी कम आवाज वाली आतिशबाजी तैयार की जा रही है। बीते कई सालों से आतिशबाजी विक्रय का काम करने वाले कलीम आतिशबाज का कहना है कि अभी तक जो परंपरागत आतिशबाजी आती थी उससे वायु और ध्वनि प्रदूषण ज्यादा होता है। जिसे लेकर अब शासन-प्रशासन सहित आम जनता भी सचेत हो गई है। जिसकी वजह से ग्रीन पटाखों की मांग और निर्माण दोनों ही बढ़े हैं। जिले में कुल आतिशबाजी में ग्रीन पटाखों की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ी है। यह ग्रीन पटाखे 30 प्रतिशत तक प्रदूषण को कम करते हैं। इसकी वजह से पटाखा बनाने वाली कंपनियों ने भी अब ग्रीन पटाखों की सप्लाई बढ़ा दी है। वहीं आतिशबाजी निर्माण और एक और तब्दील हुई है जिसमें अब देवी-देवताओं के चित्र वाले पटाखे या आतिशबाजी बाजार में आना बंद हो गई है। पटाखे महंगे होने की नई-नई वजह जुड़ती जा रही हैं। सबसे पहले तो पटाखा बनने में जो सामग्री लगती है, वह आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रही है वहीं उसमें प्रयोग की जाने वाली रद्दी भी काफी महंगी हो गई है। पटाखे के अंदर जो मसाला भरा जाता है वह मुंबई, दिल्ली, आगरा से आता है। यहां तक पहुंचने में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।