
आ स. संवाददाता
कानपुर। नगर में एक ऐसा देवी का मंदिर है जहां नवरात्रि में हजारों बच्चों के संस्कार कराने के लिए लोग दूर – दूर से आते हैं । इस मंदिर की मान्यता है, की माता सीता ने त्रेता युग में इसी स्थान पर लव और कुश का मुंडन संस्कार कराया था।
इसलिए लोग अलग-अलग शहरों से यहां आकर मान्यता के अनुसार मुंडन और कर्ण छेदन कराते हैं। माता सीता ने यहां अपने वनवास के दौरान तप किया था। इसी स्थान पर स्वयंभू मूर्ति प्रकट हुई थी।
इसलिए यहां पर तपेश्वरी नाम से मंदिर बनवाया गया था। शहर के बिरहाना रोड पर स्थित यह मंदिर तपोस्थली के रूप में जाना जाता है।
माता सीता परियार के आश्रम में रहती थी। जब वो अकेले वनवास काट रही थी। तब इसी स्थान पर माता सीता ने तप किया था। मंदिर के पुजारी और यहां के जुड़े हुए पुराने लोगों ने बताया कि इसी स्थान पर माता सीता ने तपस्या की थी और लव कुश का मुंडन संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया था।
बाद में यहां इसी तप स्थल पर स्वयंभू मूर्ति प्रकट हुई। इसलिए यहाँ मंदिर का निर्माण करा कर इसका नाम तपेश्वरी देवी रखा गया। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यहां पर संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने के लिए देश के अलग-अलग शहरों से लोग पहुंचते हैं।
मंदिर के पुजारी राजा ने बताया सैकड़ों साल से इस मंदिर में बहुत सारे श्रद्धालु बच्चों का मुंडन संस्कार कराने के लिए आते हैं। जिन्होंने इस मंदिर में संतान प्राप्ति की मनोकामना की होती है वो मनोकामना पूर्ण होने पर कनछेदन और मुंडन संस्कार इसी मंदिर में कराने पहुंचते हैं।
इस मंदिर में देवी मां की मूर्ति जहां स्थापित है, उसी के पीछे एक आला बना हुआ है। जहां मुंडन संस्कार के बाद लोग बच्चों के मुंडन संस्कार से निकले हुए बाल आटे की लोई में लपेटकर समर्पित कर देते हैं।
मुंडन संस्कार का कार्य करने वाले रोहित ने बताया कि नवरात्रि के समय यहां बच्चों के मुंडन संस्कारों की संख्या बढ़ जाती है। रोहित के चाचा भी यहां चालीस साल से मुंडन संस्कार करने का कार्य करते हैं। नवरात्रि के समय यह स्थिति होती है कि मुंडन कराने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को अपने नंबर का इंतजार करना पड़ता है। यहाँ नवरात्रि के समय रोज तकरीबन एक हजार से ज्यादा बच्चों के मुंडन संस्कार और कर्णछेदन होते हैं। मुंडन करने वाले बच्चों को लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को सबसे पहले मंदिर में देवी मां के दर्शन करने होते हैं।
इसके बाद मंदिर प्रांगण के पास ही एक स्थान पर मुंडन संस्कार से जरूरी अन्य पूजन को किया जाता है। ढोल नगाड़ों के साथ यहां मुंडन संस्कार किए जाते है।