December 10, 2024
कानपुर। विश्ववार्ता ने पिछले अंक में अवगत कराया था की उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है जहां घोटालों का साम्राज्य और विभागीय अनियमितताओं का बोल बाला है। इसी क्रम में निगम के एरिया मैनेजर और अधिशासी अभियंता सुनील यादव जिसकी भर्ती सन 2000 में 80 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कनिष्ठ अभियंता के पद पर हुई थी। जो इस पद पर रहते हुए 2003 में स्थाई हो गया था, जिसके नाम विगत 24 वर्षों मे कई घोटालों और विभागीय अनियमितताओं को लेकर विभागीय विवेचना हुई, लेकिन समय के साथ वह सभी विवेचना ठंडें बस्ते में डाल दी गई। सुनील यादव ने अपने ही करीबियों के नाम फर्मे बनाकर करोड़ों का फर्जी भुगतान किया जिसमे से एक आपूर्ति मामला 25/06/22 को राज्यसभा सांसद वीर सिंह एडवोकेट मुरादाबाद ने प्रबंध निदेशक को लिखित शिकायती पत्र में दिया था। जिस पर उन्होंने विभागीय जांच कमेटी बनाई थी। ये मामला सांसद निधि से हाई मास्ट लाइट लगाने का था। जिसमें हाई मास्ट लाइट न लगाकर स्ट्रीट लाइट लगा दी गई थी , जिसमे विभागीय विवेचना में लगभग 70 लाख रुपए का फर्जी भुगतान उजागर हुआ है। जांच कमेटी गठित होने के बाद सुनील ने अपनी कारस्तानियों को अपने अधिनस्तों अभिनव जौहरी और शशांक शर्मा को उसके द्वारा किये हुए घोटाले को अपने नाम लेने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया, सुनील की बात न मानने पर उसने उन्हे प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। यही नही महीनों तक उनका वेतन भी रोक दिया, जिस कारण आर्थिक तंगी के चलते शशांक शर्मा की मौत हो गई। जिसका शिकायती प्रार्थना पत्र उसकी मां ने निगम में सुनील के खिलाफ दिया हुआ है। सुनील यादव अपने रसूक के चलते हमेशा बचता रहा है इस घोटाले में भी मात्र जांच कमेटी बनाते हुए सुनील से मुरादाबाद के  प्रभार से हटाकर उसे पूरे प्रदेश का कार्मिक प्रभारी बना दिया गया जो कि नियमताः एक अभियंता के कार्यक्षेत्र का कार्य नही है। इस घोटाले के महासमन्दर की बड़ी व्हेल सुनील यादव जिनकी निष्ठा घोटालों में व्याप्त है, ने कार्मिक का प्रभार संभालते ही वहां पर भी एक बड़ा घोटाला कर डाला। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश जिसमे निगम के  पूर्व संविदा कर्मियों के निष्कासन के निर्णय पर समाधान होने के उपरांत ही भर्ती प्रक्रिया की जाएगी। लेकिन सुनील यादव ने उस आदेश की धज्जियां उड़ाते और अवमानना करते हुए लगभग 70 लोगों की भर्ती निगम में कर दी, जिसमे 30 कर्मचारी उसके सगे संबंधी है जिनका नाम निगम के कर्मचारी सूची में तो अंकित है। और उनका वेतन भी नियमित रूप से आहरित किया जाता है लेकिन वह कार्य करते हुए निगम में आज तक नही देखे गए। इस विषय पर भी प्रबंध निदेशक ने एक आदेश पारित किया था की उन सभी भर्ती हुए कर्मचारियों से शपथपत्र लिया जाए कि वह दूर दूर तक सुनील यादव के सगे सम्बन्धी नही है लेकिन वो आदेश भी कचरे की टोकरी में पड़ा हुआ है। निगम के सूत्रों के माध्यम से आज सुनील की हैसियत लगभग 200 करोड़ रुपये की आंकी जा रही है जिसमे होटल रामा इन्क्लेव एंड फेमिली रेस्टोरेंट मेहरबान सिंह का पुरवा के साथ अनेकों बेनामी सम्पतिया अपने करीबियों के नाम किये हुए है। निगम में चर्चा ये भी है कि नये प्रबंध निदेशक के आने से इनकी गतिविधियों में तेज़ी आ गई है कि किसी तरह राहत मिल जाये और घोटाले की रकम जमा कर नए घोटालों को करने के लिए अग्रसर हो जाये नियम ये कहता है सरकारी खजाने की चोरी करी गई है तो निर्णय न्यायपालिका करती है लेकिन आज तक एक भी घोटाले में निगम की पहल पर मुकदमा पंजीकृत नही कराया गया। हाई मास्ट लाइट घोटाला कमेटी की प्रभारी अधिकारी शासन से नियुक्त वित्त नियंत्रक मालिनी सिंह से दूरभाष वार्तालाप में उन्होंने बताया की आपूर्ति में अनिमियता पाई गई है और शासन की मंशा के अनुरूप ही कार्यवाही करी जायेगी। निगम में लगभग दस वर्षो से राज्य सरकार की मंशा के विरुद्ध ही कार्य हो रहे जिनका वर्णन एक बार मे संभव नही।

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