
संवाददाता
कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ के पूर्व सचिव राजीव शुक्ला के भारतीय क्रिकेट कन्ट्रोल बोर्ड में लगातार 15 सालों से भी अधिक पदाधिकारी बने रहने की शिकायत के साथ ही अब लोकायुक्त को उनके कार्य में शिथिलता बरतने के लिए चुनौती पेश की गयी है।
शिकायतकर्ता ने बीसीसीआई के लोकायुक्त से उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला के खिलाफ से तत्काल प्रभाव से कार्यवाही करके उन्हें अयोग्य घोषित करने की मांग भी उठायी है। बताते चलें कि तीन महीने पूर्व सोसायटी एक्ट के तहत प्रदेश में एक नए क्रिकेट संघ का जन्म हो गया है जिसके चलते क्रिकेट प्रशासन में पारदर्शिता और संविधान के पालन को लेकर एक अहम मोड़ सामने आया है। बीसीसीआई के वर्तमान उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला के खिलाफ औपचारिक शिकायत बीसीसीआई के लोकायुक्त के समक्ष दर्ज कराई गई है। शिकायतकर्ता ने मांग की है कि राजीव शुक्ला को तत्काल प्रभाव से अयोग्य घोषित किया जाए क्योंकि उन्होंने बीसीसीआई के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का घोर उल्लंघन किया है।शिकायत में यह स्पष्ट किया गया है कि राजीव शुक्ला का बीसीसीआई में कुल कार्यकाल 10 वर्ष हो चुका है, जबकि संविधान के तहत अधिकतम 9 वर्ष की सीमा निर्धारित है। इसके बावजूद वे दिसंबर 2023 के बाद भी पद पर कायम हैं।शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि राजीव शुक्ला ने यूपीसीए में 15 वर्षों तक सचिव और 17 वर्षों तक निदेशक के रूप में कार्य किया। उनके दस्तावेजों में जन्म तिथि को लेकर विसंगति है पैन कार्ड और राज्यसभा रिकॉर्ड में भिन्नता भी पायी गयी है, जिसकी शिकायत भी राज्यसभा और बोर्ड के अधिकारियों से की जा चुकी है। 2022 में उनके यूपीसीए में निदेशक पद के दस्ता्वेजों यानि केवाईसी में गड़बड़ी के चलते वे निदेशक पद से अयोग्य घोषित किए जा चुके हैं।शिकायत में यह भी कहा गया है कि बीसीसीआई द्वारा नियमों को चुनिंदा तौर पर लागू किया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, बीसीसीआई अध्यक्ष रोजर बिन्नी को 70 वर्ष की आयु में हटाए जाने की तैयारी की जा रही है, जबकि उनके खिलाफ कार्यकाल सीमा का पालन नहीं किया जा रहा। शिकायतकर्ता ने लोकायुक्त को चुनौती देते हुए मांग की है कि अगर निष्पक्षता दिखाते हुए राजीव शुक्ला को दिसंबर 2023 से अयोग्य घोषित करते हैं वह क्रिकेट जगत में बहुत ही अहम निर्णय माना जाएगा। यही नही वर्तमान अध्यक्ष रोजर बिन्नी के रिटायर होने के बाद उन्हें अध्यक्ष पद की कार्यवाहक भूमिका निभाने से रोका जाए। पद से हटने के बाद मिली सभी सुविधाएं वापस ली जाएं।संविधान का समान और निष्पक्ष पालन सुनिश्चित किया जाए। शिकायत के साथ सभी प्रासंगिक दस्तावेज, शिकायत की प्रतिलिपि, कार्यकाल का विवरण और केवाईसी विसंगतियों के प्रमाण भी प्रस्तुत किए गए हैं। शिकायतकर्ता ने राजीव शुक्ला पर संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन का आरोप तो लगाया ही है साथ ही लोढा समिति की सिफारिशों पर अमल न करते हुए 9 वर्ष की सीमा पार करने के बावजूद उपाध्यक्ष पद पर बने रहने का आरोप लगाया है। बीसीसीआई संविधान की धारा 6(5)(एफ) और 3(बी)(1)(i) के उल्लंघन की बात करते हुए, यूपीसीए में पदों के दुरुपयोग और हितों के टकराव का भी उल्लेख करते हुए शिकायतकर्ता ने राजीव शुक्ला से सभी सुविधाएं वापस लेने की मांग भी उठायी है। अब देखना यह है कि लोकायुक्त इन शिकायतों पर कितनी गंभीरता दिखाते हुए निर्णय लेते हैं।