July 27, 2024

संवाददाता।
कानपुर। नगर में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करने वाला अकीदत का स्थान मौजूद है। जो नगर के जाजमऊ इलाके में टीले पर 700 साल से भी ज्यादा पुरानी दरगाह मौजूद है। जिसे जानकर मुगलकाल के समय से होना बताते हैं। गुरुवार 13 सितंबर को यानी आज दरगाह में का उर्स कुल शरीफ मनाया जा रहा है। हजरत मखदूम शाह आला का इस साल 765 वाँ उर्स है। उर्स में तकरीबन 5 लाख लोग देश के कोने-कोने से पहुंचते हैं। कानपुर के मखदूम शाह आला की दरगाह में हिंदू मुस्लिम सभी आकर दुआ मांगते हैं। लेकिन खास बात यह है, कि यहां होने वाले उर्स पर दरगाह के अंदर लगे सैकड़ों साल पुराने नीम के पेड़ में कुल शरीफ होने के बाद कुछ देर के लिए नीम की पत्तियां मीठी हो जाती हैं। लोगों की मान्यता है, कि कुल शरीफ के बाद नीम के पेड़ की पत्तियां खाने से किसी भी प्रकार का रोग कष्ट दूर हो जाता है। उर्स के मौके पर यहां लाखों लोगों को पैगाम भी दिया जाता है।जाजमऊ इलाके में हज़रत मखदूम शाह आला की दरगाह है। यह दरगाह फिरोज शाह तुगलक ने बनवाई थी, जिसके दो शिलालेख इस दरगाह में लगे हुए हैं। दरगाह का इतिहास मुगलों के समय से जुड़ा हुआ है। हजरत मखदूम शाह आला से लेकर जुड़ी बातों में लोगों ने बताया कि जैसा कि वह सुनते आते हैं कि बगदाद में तालीम हासिल कर वो भारत आ गए थे। यहां से वह कानपुर आए और यही बस गए। 60 साल कानपुर के जाजमऊ में रहे, तब कानपुर एक गांव हुआ करता था और जाजमऊ एक तहसील हुआ करती थी। हजरत मखदूम शाह आला हमेशा लोगों की मदद करते थे। मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफी राष्ट्रीय अध्यक्ष ऑल इंडिया गरीब नवाज ने बताया कि जाजमऊ इलाके के टीले पर हजरत मखदूम शाह आला की दरगाह है। इसका 765 वां उर्स कुल शरीफ गुरुवार 13 सितंबर 2023 को मनाया जा रहा है। स्कूल शरीफ में शामिल होने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग कुल शरीफ उर्स में पहुंचते हैं लोगों की हकीकत यानी आस्था यहां से इतनी जुड़ी हुई है कि लाखों लोग यहां पर उर्स के मौके पर आकर एक साथ दुआ करते हैं। यहां आने वाले लोगों के कष्ट दूर होते हैं। दरगाह में उर्स के मौके पर कई किलोमीटर तक रास्ता बंद कर दिया जाता है। केवल हर तरफ दरगाह की तरफ आने वाले जरीन दिखाई देते हैं। दरगाह के अंदर और उसके मौके पर कव्वाली भी की जाती है। एक दिन पहले से ही रास्ते वाहनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं। गुरुवार को 11बजे हजरत मखदूम शाह का उर्स कुल शरीफ किया गया। दरगाह पर अकीदत की बात की जाए, तो यहां मन्नत मांगने वाले मन्नत पूरी होने पर दरगाह पहुंचकर दुआ करते हैं। जिसमें मन्नत के अनुसार वह गरीबों को कपड़ा खाना और उनकी बीमारी से शिफा के लिए जरूरत की चीज देने का काम करते हैं। मन्नत के मुताबिक दुआ पूरी होने पर लोग दरगाह में चादर पेश करते हैं। जाजमऊ में स्थित हजरत मखदूम शाह आला की दरगाह पर उर्स के मौके पर अनुमान के मुताबिक 5 लाख लोग पहुंचते हैं। लाखों लोग एक साथ हजरत मखदूम शाह के उर्स कुल शरीफ पहुंच कर दुआ मांगते हैं। यहां से जारी होने वाले पैगाम को सुनते हैं। उसे पैगाम पर अमल करने का भी काम किया जाता है। लाखों लोगों की अकीदत जाजमऊ की हजरत मखदूम शाह दरगाह से जुड़ी हुई है। हजरत मखदूम शाह के उर्स के मौके पर जिस दिन कुल शरीफ किया जाता है। उस दिन हाईवे बंद कर दिया जाता है। हाईवे के ऊपर से निकल रहे पुल पर ही वाहनों का आवागमन होता है। नीचे का पूरा हाईवे बंद किया जाता है,यहां केवल हर और दरगाह की तरफ जाने वाले अकीदतमंद दिखाई देते हैं। कुल शरीफ उर्स होने के बाद और दुआ पैगाम होने के बाद हाईवे को खोल दिया जाता है। मौलाना मोहम्मद हाशिम अशरफी ने बताया की हजरत मखदूम शाह आला की दरगाह में सभी धर्मों से जुड़े लोगों की आस्था जुडी हुई है। दरगाह हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। इस दरगाह से लाखों हिंदू भाइयों की भी आस्था जुडी हुई है और होने वाले उर्स पर यहां हिंदू भाई भी पहुंचकर दुआ मांगते हैं। मखदूम शाह आला के उर्स कुल शरीफ के दिन दरगाह के अंदर मौजूद नीम के पेड़ से जुड़ी अकीदतमंदो की बड़ी आस्था है। यहां मान्यता है कि कुल शरीफ के तुरंत बाद दुआ पढ़ने के बाद नीम के पेड़ की पत्तियां कुछ समय के लिए मीठी हो जाती हैं। जिसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से कष्टों और रोगों का निवारण होता है।इसलिए जैसे ही दुआ होती है ,सैकड़ो साल पुराने इस पेड़ की तरफ लोग दौड़ पड़ते हैं और नीम की पत्तियां तोड़कर खाने लगते हैं। दरगाह के बाहर प्रसाद और चादर की दुकान लगाने वाले मुहम्मद अदनान ने बताया की हर कुल शरीफ को ही ऐसा होता है कि लोग दुआ होते ही नीम के पेड़ की तरफ दौड़ पड़ते हैं। 

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