
संवाददाता।
कानपुर। नगर में विवादों से घिरे पुलिस कमिश्नर डॉ. आरके स्वर्णकार को सोमवार देर रात हटा दिया गया। अब गोरखपुर के एडीजी अखिल कुमार को कानपुर का नया पुलिस कमिश्नर बनाया गया है। कानपुर पुलिस कमिश्नर बनने के बाद लगातार आईपीएस डॉ. आरके स्वर्णकार विवादों से घिरे हुए थे। उनकी कार्यशैली से महकमा ही नहीं पुलिस और पत्रकारों में भी आक्रोश था। कानपुर में बिगड़ रहे लॉ एंड ऑर्डर को देखते हुए उन्हें हटाया गया है। आईपीएस डॉ. आरके स्वर्णकार ने 21 अगस्त को कानपुर पुलिस कमिश्नर का चार्ज संभाला था। सबसे पहले उन्होंने कानपुर के पत्रकारों को अपने टारगेट पर लिया। कानपुर पुलिस कमिश्नर ऑफिस में बने प्रेस रूम को रातो-रात आगंतुक कक्ष बना दिया। इसके विरोध में पत्रकारों ने पुलिस कमिश्नर ऑफिस का घेराव और हंगामा किया तो उसे फिर से रिस्टोर किया गया। इसके बाद मिडिएशन सेंटर में वकीलों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया। मिडिएशन सेंटर के बाहर 16 दिसंबर को नोटिस चस्पा कर दिया गया था कि यहां वकीलों का प्रवेश वर्जित है। इसके बाद वकीलों ने कानपुर पुलिस कमिश्नर दफ्तर का घेराव और जमकर हंगामा किया था। तब जाकर पुलिस कमिश्नर ने वकीलों के प्रवेश पर लगी रोक को हटाया था। कानपुर पुलिस कमिश्नर ने बीते सप्ताह पुलिस कमिश्नर कैंपस में प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष समेत कई पत्रकारों के वाहनों का चालान काटने का आदेश दिया था। पुलिस फोर्स ने पत्रकारों के वाहनों की चेकिंग और चालान शुरू कर दिया था। इसके बाद पत्रकार सड़क पर उतर आए और पुलिस ऑफिस के गेट पर धरना शुरू कर दिया और उनकी गाड़ी के आगे बैठ गए थे। इसके बाद उन्होंने कार्रवाई रोकने का आदेश दिया था। इससे लगातार सरकार की छवि धूमिल हो रही थी। कानपुर में तैनात इंस्पेक्टर अरुण सिंह ने शहर के सबसे मलाईदार थाने में तैनाती के लिए 8 लाख रुपए शब्बीर नाम के व्यक्ति को दिया था। शब्बीर के पुलिस कमिश्नर से पारिवारिक संबंध थे। लेकिन इसी बीच अरुण का ट्रांसफर प्रयागराज हो गया।रुपए वापसी के लिए अरुण की पत्नी ने शब्बीर के घर पर हंगामा किया और डायल-112 पर शिकायत की थी। देर रात तक चली पंचायत के बाद शब्बीर ने आधी रकम 4 लाख रुपए वापस किया था। इसके साथ ही शहर के 20 से ज्यादा दरोगा-इंस्पेक्टरों से भी मोटी रकम तैनाती के नाम पर लिया था। इसी बीच जज के नाम पर एक व्यक्ति से 1 लाख रुपए वसूली में शब्बीर फंस गया और उसे जाजमऊ थाने की पुलिस ने अरेस्ट करके जेल भेज दिया था। कानपुर पुलिस कमिश्नर ने तैनाती के बाद सबसे पहले पत्रकारों को अपने टारगेट पर लिया। इसके बाद वकील और नेताओं की भी सुनवाई नहीं कर रहे थे। भाजपा के पदाधिकारियों को भी तरजीह नहीं देने और आम पब्लिक की तरह नंबर से अपनी बात कहने के लिए मजबूर करते थे। इससे कानपुर का लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने लगा था। शासन ने लगातार शिकायतों के बाद तैनाती के 4 महीने बाद ही हटा दिया।