
संवाददाता
कानपुर। दीपावली में जहां एक ओर घरों में लक्ष्मी गणेश का पूजन कर लोग सुख समृद्धि की कामना कर रहे थे। वहीं, दूसरी ओर श्मशान में चिताओं के आगे दीपक जलाकर मंत्र पढ़े जा रहे थे। तंत्र साधना की जा रही थी। दीपावली में पूजन के बाद शहर के भैरव घाट स्थित श्मशान का नजारा घरों से अलग था। यहाँ चिताओं पर पूजन किया जा रहा था।
शहर के भैरव घाट के श्मशान घाट पर देर रात 12 बजे के बाद दीपावली पर अमावस्या की रात में अंधेरे में श्मशान घाट में एक नहीं बल्कि सैकड़ों तांत्रिक अलग अलग स्थानों पर बैठे हुए थे। यहां बिल्कुल अंधेरा था, लाइट का नामोनिशान तक नहीं था। हालांकि यहां पर दीयों को नहीं जलाया गया था। सिर्फ चिता के आगे बैठकर मंत्रों को जाप किया जा रहा था। थोड़ा आगे बढ़ने पर देखा कि कुछ लोग गंगा की ओर मुंह करके हाथ में माला लेकर भी जाप कर रहे थे।
माना जाता है कि तंत्र साधना में गंगा नदी, भैरव मंदिर और श्मशान का एक स्थान पर होना उत्तम माना जाता है। शहर के भैरव घाट में यह तीनों चीजें मौजूद हैं। इसके अलावा दीपावली की रात को अमावस्या की रात भी कहा जाता है।
ऐसे में यह संयोग है कि तांत्रिक अपनी तंत्र साधना व सिद्धि आदि के लिए यहां चले आते हैं। बताया जाता है कि तंत्र साधना के अलावा यहां पर कई तरह के पूजन भी होते हैं।
तंत्र साधना करने आए एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि साधना का समय निशिता काल से शुरु होता है जो कि भोर तक चलता है। यहां पर आने वाले तांत्रिक सुबह तक यहां पर रुकते हैं, जिसके बाद चले जाते हैं। साधना के लिए आने वाले तांत्रिक साथ में कुछ सहयोगियों को लेकर भी आते हैं जो कि किसी सामान की आवश्यकता होने पर उन्हें मुहैया कराते हैं।






