September 8, 2024

संवाददाता।
अयोध्या।
सोलहवीं शताब्दी से ही भारत में अंग्रेजी राज कंपनों के माध्यम से तेजी से पांव पसार रहा था। अवध के इलाके पर भी उसका परोक्ष कराया। श्रीराम जन्मभूमि पर अपने दावे को लेकर हिंदू समाज के लोग अंग्रेजी अधिकारियों के पास भी गए थे। हिंदू समाज के लोगों ने 1813 में अंग्रेजों से मिलकर पहली बार यह ाज किया था कि वर्ष 1526 में जब चावर आया तो उसने राम मंदिर को तुरुक कर ही विवादित ढांचे का निमांग कराया था। उसी के नाम पर विवादित डांचे को बाबरी मस्जिद नाम से गया। इस मामले में हिंदू पक्ष कभी शांत नहीं बैठा और निरंतर ओराम जन्मभूमि और हिंदुओं के अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद होता रहा। दोनों पक्षों के बीच विकटनाएं हुई थीं। 1955 में हनुमान गद्दी पर हमला हुआ। ब्रिटिश इतिहासकारों की माने तो 1855 में मुरीद पर जमा होकर कुछ सौ मीटर दूर अयोध्या के प्रतिष्ठित हनुमानगढ़ी मंदिर पर करने के लिए धावा बोला। उनका दावा था कि यह मंदिर एक मस्ि बनाया गया खूनी संघर्ष में हिंदू वैरागियों ने हमलावरों को हनुमान गदी से खदेड़ दिया जो भागकर बरी मस्जिद परिसर में छिपे वहां भी मुस्लिम हमलावर मारे गए जो उहाँ कब्रिस्तान में दफन हुए। कई गर्वेटियर्स, विदेशी यात्रियों के संस्मरणों और पुस्तकों में उल्लेख है कि हिंदू समुदाय पहले से ही इस मस्जिद के आसफस की जगह को सन 1857 में प्रथम स्वतंता संजय के बाद नवाची शासन समाप्त होने पर चिटिश कानून, शासन और नवय व्यभामा लागू हुई है कि इसी दरम्यान हिंदुओं ने मस्जिद के चाहरी वर्ष 1883 में निमोही अखाड़ा ने लिम्ब और भजन-पूजा शुरू कर जिसको लेकर हां झगड़े होते रहते थे। अंग्रेजों से बाबरी मस्जिद के एक कर्मचारी मौली मोहम्मद असगर में 30 नबंवर 1858 को लिखित शिकायत की कि हिंदू वैरागियों ने मस्जिद से बराकर एक चबूतरा बना लिया है और मस्जिद की दीवारों पर राम-राम लिख दिया है। राति व्यवस्था कायम करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बाल 1859 में विवादित जगह पर कर को एक बाड़ बनता दी। यही नहीं, सामने चबूतरे और मस्जिद के बीच दीवार बना मुख्य दरवाल एक ही रहा। इसके चाद भी मुसलमानों की तरफ से लगातार लिखित शिरते होती रहीं कि हिंदू वहां नत्र में बाधा डाल रहे है। डिप्टी कमिश्नर से माँदर को अनुमति मांगी अप्रैल 1883 में निमोही अखाड़ा ने डिप्टी कमिनर फैजाबाद को अर्जी देकर मंदिर बनने की अनुमति मांगी, लेकिन मुस्लिम समुदाय की आपत्ति पर अनी नामंजूर हो गई। इस बीच मई 1883 में ही मुंस्तै रामलाल और राममुरारी राम बहादुर था वहीर निवासी करिदा गुरमुख सिंह पंजावी हां पाथर वगैरह सभी लेकर आ गया और प्रशासन से माँदर बनाने की अनुमति मांगी, लेकिन डिप्टी कमिश्नर ने वहां से पत्थर हटवा दिए। 1985 में पहली बार महंत रघुवर दास ने मंदिर को लेकर याचिका लगाई निनोंदी अखाड़े के महंत रघुबर उस ने चबूतरे को जन्म स्थान बताते हुए भारत की कितानी सरकार और मोहम्मद असगर के खिलाफ सिविल कोर्ट में पफाला मुकदमा 29 जनवरी 1885 को दायर किया। मुकदमे में 17821 फोट सम्बे-चौड़े कूतरे को जन्मस्थान बताना गया और वहीं पर मंदिर बनेको अनुमति मांगी गई ताकि पुजारी और के भगच्चन दोनों धूप, सदी और बारिश से निजात पाएं। स्वत 1934 में विवादित क्षेत्रको लेकर हिंसा भड़की। इस दौरान पाती रविवदित हिस्सा ले गया। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इसकी मरम्मत कराई। इसके बाद 23 दिसंबर 1949 को हिंदुओं ने ांचे के केंद्र स्थल पर रामलाको प्रतिकपू अर्चना शुरू की। इसके बद से ही मुस्लिम ने नमाज पढ़ना बंद दे कर दिया और वह कोर्ट चा गया।

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