कानपुर। उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम मुख्यालय कानपुर नगर जिसके उद्देश्य राष्ट्र को ससक्तिकरण, माध्यम, सांसद निधि, विधायक निधि अन्य निधियों,से विकास, औधोगिक क्षेत्रों में विकास, कोयला खदानों से कोयला मंगा कर छोटी इकाइयों में सरकारी मूल्य पर आपूर्ति करना,सरकारी विभागों में मेन पावर आपूर्ति , सरकारी विभागों में छोटी छोटी इकाइयों द्वारा उत्पादित माल को शासकीय अर्ध शासकीय विभागों में अपने माध्यम से आपूर्ति करता है, इन सभी कार्यों को गुणवत्तापूर्ण तरीके से करने के लिए शासन विभाग को वार्षिक 1000 हज़ार करोड़ रुपये से ऊपर की निधि के कार्य प्रदान करता है। लेकिन लघु उद्योग इन सभी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना तो दूर की बात ( 2014 से ) से घोटालों और विभागीय अनिमियताओं का अंबार बना हुआ है निगम जिसका संचालन मृतक आश्रितों एक दो संविदा कर्मियों और आउटसोर्सिंग से भर्ती कर्मचारियों के द्वारा किया जा रहा है। इसमें जिम्मेदार बने बैठे अधिकारी ही दीमक बनकर विभाग को खत्म किये दे रहे है विगत दस वर्षों से विभाग में मात्र चार, पांच अधिकारियों का ऐसा कॉकस हावी है कि, हाई कोर्ट का आदेश, शासन की विभागीय नियमावली, प्रबंध निदेशक तक के जांच आदेश को दरकिनार किये हुए है ये लोग। यह एक सरकारी निगम न होकर मात्र कुछ लोगो के हाथ की कठपुतली बन कर रह गया है। जिसमे कार्यरत कार्मिक विभाग की नियमावली को दरकिनार करते हुए पदौन्नति लेकर अधिकारी बने बैठे लोगों ने ही सारा खेल रच रखा है और अपनी अपनी दुकानें खोल रखी है। जो निगम में होने वाले कार्यों के लिए अपने रिश्तेदारों की फौज खड़ी कर निविदा प्रक्रिया से लेकर आपूर्ति व्यवस्था तक हतियाये हुऐ है और सैकड़ों करोड़ के कार्यों को मात्र कागजों में भी कर दिया गया है। ये विभाग भर्ती से लेकर आपूर्ति तक घोटालों और अनिमियताओं से सराबोर है। जैसे निगम के बोर्ड से प्रस्तावित 294 कर्मचारियों ही निगम में होने चाहिए लेकिन 65 कर्मचारी नियमित, संविदा में 4 और आउटसोर्सिंग में 268 लोगो की भर्ती की गई है जो कुल मिलाकर लगभग 337 कर्मचारी होते है जिसमे से काफी कुछ तो कागजों में ही कार्यरत है और उनकी पगार भी उठाई जा रही है इतने आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की इस भर्ती प्रक्रिया में ये भी आरोप है उन कर्मचारियों के जिनके पास ऊपर से पैसा देने को नही था हाँ निगम को निष्ठापूर्ण सेवा देने के प्रसस्तिपत्र जरूर थे उनके पास लेकिन उनकी भर्ती पुनः न हो पाई जिनका मामला हाईकोर्ट में याचिका संख्या2408/2019 और कोर्ट ऑफ कंटेंट 2766/2019 विचाराधीन है।
—आकण्ठ गले तक डूबा भ्र्ष्टाचार में उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम।
दूसरा निगम में चार पहिया वाहन दस लोगो को उपलब्ध कराये गये है जिनका प्रत्येक माह एक गाड़ी का एक लाख खर्च आता है जिनमें कुछ ने तो अपनी ही गाड़ी अपना चालक रख रखा है जिसका खर्च निगम वहन करता है। कुछ चालक को ही चपरासी बना 14000 हजार पगार दी जाती है बाकी 30 हजार गाड़ी का किराया 30 हजार डीजल, मेंटिनेंस अलग जबकि निगम में नियमताः गाड़ियां किसी रजिस्टर्ड ट्रेवल्स की होनी चाहिए लेकिन यहां सभी गाड़ियां प्राइवेट लगी हुई है। यदि शासन द्वारा इस निगम के किये गये कार्यों की जांच करा दी जाये तो निगम की कागजी लिखा पढ़ी में ही ढेरों घोटाले उजागर हो जाएंगे क्योंकि निगम में पहले भी एनआरएचएम घोटाले मे अधिकारी सीबीआई जांच के घेरे में आये थे जिसमें कई जेल भी गये थे एक तो चार साल जेल भी रहा जिसके पास अभी भी दो एरिया ऑफिस का प्रभार है जिसमे कई जिले आते है। और इनमे से ही एक अधिकारी तो ऐसा भी है जिसको डेपुटेशन में लेक्फेड विभाग का भी प्रभार मिला था तो वहां भी उसने लाखों का घोटाला कर दिया था जिसकी भी सीबीआई जांच चल रही है। साथ ही पूर्व में प्रबंधनिदेशक ने निगम में एक अधीक्षण अभियंता के खिलाफ जांच कमेटी बनाई जिसमे करोड़ों का घोटाला है लेकिन वो उनके स्थानांतरण के बाद जांच दबा दी गई।
—दस वर्षों से निगम की बैलेंस शीट नही हुई पूर्ण।
आलम ये है की दस साल से ऊपर हो गए निगम की बैलेंस शीट नही कंप्लीट हो पाई है।और इस कार्य का प्रभार जिस अधिकारी के पास था उसके रिटायरमेंट के बाद पुनः उसकी उसी पद पर नियुक्ति कर दी गई जिसके पास दो एरिया ऑफिस का प्रभार है जिसमे कई जिले समाहित है वर्तमान में जिसकी उम्र 64 साल और उन्हें सैलरी 65 हज़ार दी जा रही जो कार्य करने की स्थिति में नही है उनके किसी बीमारी के कारण हांथ कांपते है , फिर भी उनसे वित्तिय लेनदेन की चेकों और फाइलों में हस्ताक्षर कराये जाते जिनमे हर हस्ताक्षर में भिन्नता होती है साथ ही उनको भी निगम से सरकारी गाड़ी मुहैया कराई गई जिससे वो प्रतिदिन लखनऊ से कानपुर आना जाना करते है।
निगम के कर्मचारियों के यूनियन अध्यक्ष मुकेश बाजपेयी ने दूरभाष द्वारा वार्तालाप में बताया कि इस विषय की अनिमियता का वो लगातार विरोध कर रहे है और उन्होंने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को पत्राचार किया है। क्योंकि विभाग में शासन की नियमावली के विरुद्ध कार्य हो रहे है। उनका कहना है जो सात कर्मचारियों की पदौन्नति करी गई है उनका लेखा विभाग में वरिष्ठ सहायक का सहायक प्रबंधक पद पर किया गया है जिनका वरिष्ठता सूची में आने में अभी सात से आठ माह का समय शेष है और जो सेवानिवृत्त अधिकारी को पुनः भर्ती किया गया है उनकी सीबीआई जांच अभी भी प्रचलित है और उन्हें शासन द्वारा नियुक्त वित्त नियंत्रक के अधिकतर कार्य दे दिये गए है जो गलत है।
घोटाले बहुत है उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम में जिनका वर्णन एक बार मे करना संभव नही है।