संवाददाता।
कानपुर। नगर में सीएसजेएमयू में चल रहे शिक्षा मंथन-2023 कार्यक्रम में शामिल होने आए प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति को लेकर जिस तरह से प्रदेश में काम किए जा रहे हैं, आने वाले समय में यह काफी सुखद परिणाम देंगे। शिक्षा की प्रगति को लेकर राज्यपाल के निवेदन पर जो कार्यक्रम आज विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया है। यह बहुत ही अच्छा है। पूरे देश भर के प्रोफेसर शिक्षकगण एक मंच पर इकट्ठा होकर हर विषयों पर चिंतन कर रहे हैं। जिसका परिणाम बहुत अच्छा देखने को मिलेगा। एनएएसी ग्रेडिंग में यूपी के कई शिक्षण संस्थान सफलता पाने में हासिल हुए हैं। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इस ओर बहुत गंभीरता से काम कर रही हैं, जो कि पहले कभी नहीं हुआ। युवा साथी किस तरह से अच्छी शिक्षा को ग्रहण कर खुद को एक बेहतर नागरिक बना सकें, अब इस पर चिंतन किया जा रहा है। हम एक मंच पर आकर शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह समागम एक बहुत अच्छा परिणाम देगा। कार्यक्रम के दूसरे दिन रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर योगेश सिंह ने कहा कि सेमेस्टर परीक्षाओं के होने से शिक्षा में काफी बड़ा बदलाव हुआ है, जब भी कोई नया बदलाव किया जाता है तो लोगों को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है। मगर बदलाव तभी किया जाता है, जब कुछ अच्छा होना होता है। हम बदलाव करेंगे तभी शिक्षा का स्तर बढ़ा सकते हैं। योगेश सिंह ने कहा कि जब कोई नई चीज लागू हो और उसे करना पड़े तो वह थोड़ा सा दुख देती है, लेकिन कुछ समय बाद जब हम उसे सीख लेते हैं तो उसी में ही हमें मजा आने लगता है। टीचरों को थोड़ा सा जागरूक होना पड़ेगा, क्योंकि बेहतर बनने के लिए हमें आधुनिक युग की तरफ जाना है। टीचरों की कमी पहले भी थी। क्लासरूम पहले भी गड़बड़ थे। हमको इसमें ही बेहतर करके दिखाना होगा। सभी विश्वविद्यालय के पास रिसोर्सेज है लेकिन उन्हें कब और किस समय पर प्रयोग करना है। यह किसी को नहीं मालूम या फिर वह वहां तक सोचते नहीं है। हमें अपने रिसोर्सेज का प्रयोग कब करना है और कहा करना है। इसका चयन करना बहुत जरूरी है। इसका फायदा बच्चों को मिलना चाहिए, तभी वह आगे बढ़ पाएंगे। कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक, प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल भी शामिल हुए। प्रो. योगेश सिंह ने नेशनल एजुकेशन पॉलिसी सत्र के दौरान कहा कि इस पॉलिसी से लोगों को बहुत उम्मीदें हैं। हमें अपनी क्वालिटी मैनपावर को मजबूत बनाना है। उसे कैसे बढ़ाना है यह हमको अपने स्तर से सोचना पड़ेगा। समझ की समझ को विकसित करना ही शिक्षा है। अब स्किल पर बात करनी शुरू कर दी गई है। शिक्षकों को भी अपने को नई तरह से बदलना है। यह तो सभी लोग चाहते हैं कि हमारा बच्चा खुश रहे, लेकिन जब घर में मां बाप खुश नहीं, स्कूल में टीचर कुछ नहीं, जब बच्चा किसी को खुश नहीं देखता तो वह कैसे खुश रहे। इसलिए पहले हमको खुश रहना पड़ेगा फिर बच्चे खुश होंगे। इस पर विचार करने की बहुत जरूरत है।प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि हमें बच्चों की विधा को इंप्रूव करने की जरूरत है, जब तक हम अपने विश्वविद्यालय के बच्चों को यह नहीं बताएंगे कि टीमवर्क के क्या फायदे हैं तब तक कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। हमें उनकी विधा को इंप्रूव करना है। हम जिस चीज को प्रीमियम देंगे वह चीज आगे जरुर बढ़ेगी। बच्चों को यह समझाना है कि सीखने के साथ-साथ हमें सिखाना भी बहुत जरूरी है। आज के समय में हमने अच्छाई को प्रमोट करना बंद कर दिया है। इसका असर गलत पड़ रहा है। बच्चे हमारे आचरण से ही तैयार होंगे, जब घर में मां बाप के पास टाइम नहीं, स्कूल कॉलेज में टीचर के पास टाइम नहीं तो बच्चों में इंप्रूवमेंट करना बहुत मुश्किल है। इसलिए हमें अपने सिस्टम को बदलना है और उसे मजबूत बनाना है। राष्ट्रीय नई शिक्षा नीति को प्रदेश सरकार ने पूरे देश में सबसे पहले अपनाया और विश्वविद्यालयों में इसे लागू भी किया। नतीजा यह है कि अगले साल हम स्नातक का पहला बैच देने जा रहे हैं। फिर भी विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में आज भी नई शिक्षा नीति को लेकर तमाम तरह की समस्याएं हैं जिन्हें दूर किए जाने की आवश्यकता है। यह बात राज्यपाल के विशेष कार्य अधिकारी डॉ. पंकज एल जानी ने कही। उन्होंने बताया कि महाविद्यालयों में स्किल कोर्सों की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन आज भी कई कॉलेजों में स्किल कोर्स पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं है। महाविद्यालयों के पास फंड की भी बेहद कमी है, जिसके कारण वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर व संसाधनों में सुधार वह अपेक्षित बदलाव नहीं कर पा रहे हैं। नई शिक्षा नीति में क्रेडिट ट्रांसफर प्रणाली शुरू की गई है, लेकिन क्रेडिट बैंक के जरिए क्रेडिट ट्रांसफर किए जाने के बारे में विभिन्न तरह की भ्रांतियां हैं। कोई विश्वविद्यालय 100 अंक के प्रश्न पत्र में 4 क्रेडिट पॉइंट दे रहा है तो कोई 3 क्रेडिट प्वाइंट दे रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार स्टडी मेटेरियल का भी अभाव है। कोई छात्र चाहता है कि वह अपने दो क्रेडिट पॉइंट लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के किसी कोर्स में प्रवेश ले ले, लेकिन पूरी जानकारी ना होने से वह ऐसा नहीं कर पाता। विज्ञान के तमाम महाविद्यालयों में लैब भी नहीं है। इसके कारण रिसर्च वर्क नहीं हो पा रहा है। तकनीकी का उपयोग करने में भी महाविद्यालय काफी पीछे हैं।