10,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ेगा और लगभग 100 किलोमीटर दूर जाकर दुश्मनों के ठिकाने करेगा ध्वस्त।
संवाददाता।
कानपुर। नगर में आईआईटी कानपुर के नाम एक और उपलब्धि जुड़ने जा रही है। यूक्रेन युद्ध में प्रयोग किए गए सुसाइडल ड्रोन को अब आईआईटी कानपुर ने बनाने में सफलता हासिल की है। जब अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन खरीदने की बात चल ही रही थी कि तभी संस्थान ने इस ड्रोन को तैयार कर खुद को साबित कर दिखाया है। ये सुसाइडल ड्रोन 100 किमी की रेंज में 6 किलो वॉरहेड के साथ दुश्मन के ठिकाने को चंद पलों में तबाह कर देगा। एयरोस्पेस डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. सुब्रह्मण्यम् सादर्ला ने बताया कि स्टेल्द टेक्नॉलजी के चलते इस रेडार पर भी पकड़ा नहीं जा सकेगा। आईआईटी कानपुर के नाम एक और उपलब्धि जुड़ने जा रही है। यूक्रेन युद्ध में प्रयोग किए गए सुसाइडल ड्रोन को अब आईआईटी कानपुर ने बनाने में सफलता हासिल की है। जब अमेरिका से प्रीडेटर ड्रोन खरीदने की बात चल ही रही थी कि तभी संस्थान ने इस ड्रोन को तैयार कर खुद को साबित कर दिखाया है। ये सुसाइडल ड्रोन 100 किमी की रेंज में 6 किलो वॉरहेड के साथ दुश्मन के ठिकाने को चंद पलों में तबाह कर देगा। एयरोस्पेस डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. सुब्रह्मण्यम् सादर्ला ने बताया कि स्टेल्द टेक्नॉलजी के चलते इस रेडार पर भी पकड़ा नहीं जा सकेगा। उन्होंने बताया कि इसके 2 ट्रायल किए जा चुके हैं, जिसमें थोड़ी-थोड़ी कमियां सामने आई हैं। अब उन कमियों को दूर करके फिर से इस पर काम किया गया है। 5 से 6 बार अभी ट्रायल और होगा। माना जा रहा है कि 6 माह के अंदर इसे तैयार कर लिया जाएगा। प्रो. सुब्रह्मण्यम् सादर्ला ने बताया कि अभी ड्रोन को उड़ाने के लिए जिस लाॅन्चर का प्रयोग किया जा रहा था, अब उसको अपग्रेड किया गया है, क्योंकि जिस रॉकेट लॉन्चर से पहले ड्रोन को उड़ाया गया था। उसकी मार थोड़ी कम थी। इसलिए अब उसे और भी आधुनिक तरीके से तैयार किया गया है। लाॅन्चर पर काम लगभग पूरा हो चुका है। पिछला ट्रायल किया तो रॉकेट लाॅन्चर को और अपग्रेड करने की बात को महसूस किया गया था। यह ड्रोन धरती से 10,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ेगा और लगभग 100 किलोमीटर दूर जाकर दुश्मनों के ठिकाने पर गिरेगा। इसकी क्षमता इतनी है कि जिस जगह गिरेगा उसके 1 किलोमीटर दायरे को प्रभावित करेगा। इससे दुश्मन बच नहीं पाएंगे। रशिया और यूक्रेन युद्ध के दौरान यूक्रेन ने इस ड्रोन का काफी ज्यादा प्रयोग कर रशिया के कई ठिकानों को नष्ट किया था। युद्ध में इस ड्रोन की भूमिका बेहद सामने आई थी। प्रो. सुब्रह्मण्यम् सादर्ला ने बताया कि डीआरडीओ के डीवाईएसएल प्रॉजेक्ट के तहत पिछले एक साल से इस ड्रोन पर काम चल रहा था। पूरी तरह से स्वदेशी डिजाइन वाले इस कामकाजी ड्रोन को तीनों सेनाओं की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया गया है। करीब 2 मीटर लंबे फोल्डेबल फिक्स्ड विंग ड्रोन में कई खूबियां भी है। ये कैमरे और इन्फ्रारेड सेंसर से युक्त होगा। इसे कैटपल्ट या कैनिस्टर लॉन्चर से लॉन्च किया जा सकेगा। सबसे अहम बात ये होगी कि ये ड्रोन दुश्मन के इलाके में जीपीएस ब्लॉक होने के बावजूद आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (विजुअल गाइडेंस) की मदद से टारगेट को ध्वस्त कर देगा। बैटरी से चलने वाला आत्मघाती ड्रोन लॉन्च करने के 40 मिनट में 100 किमी की रेंज में दुश्मन पर कहर बरपाएगा। प्रो. सुब्रह्मण्यम् सादर्ला के नेतृत्व में तैयार किया जा रहा यह ड्रोन बनाने में कई लोगों की अहम भूमिका है। उन्होंने बताया कि इसको तैयार करने में टेक्नीशियन विशाल वर्मा, तुषार, प्रेम जी और पीएचडी कर रहे नीतीश कुमार, किशोर, जूनियर रिसर्च फेलो सागर की भी अहम भूमिका है। टीम वर्क करके हम लोग यहां तक पहुंचे हैं। प्रो. सादर्ला ने बताया कि अब जो लांचर तैयार किया गया है। यह मानव रहित हवाईयान है। ऑटो पायलट का प्रयोग इसमें किया गया है। हाइब्रिड युद्धों के दौर के सबसे अहम हथियार माने जाने वाला ड्रोन हवा में पहुंचते ऑटोनॉमस होगा, यानी अल्गोरिदम के हिसाब से मशीन खुद फैसले लेगी। दूसरा विकल्प इसे बेस स्टेशन से रिमोट से नियंत्रित करने का होगा। यह आत्मघाती ड्रोन पहले से सेट किए गए लक्ष्य से अधिकतम 2 मीटर तक ही भटक सकता है। जल्द ही वॉरहेड के साथ इसका परीक्षण होगा। इसमें लगे कैमरे से बेस स्टेशन को दुश्मन के इलाके की तस्वीरें भी मिलेंगी। किसी भी मौसम और कहीं भी काम करने में सक्षम ड्रोन स्टेल्द तकनीक से युक्त होगा, जिसके कारण दुश्मन के रेडार इसे आसानी से पकड़ नहीं सकेंगे। उन्होंने बताया कि देसी ड्रोन कम से कम 100 मीटर और अधिकतम 4.5 किमी की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है। दिन के साथ रात में भी दुश्मन के ठिकानों को इससे निशाना बनाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। उन्होंने बताया कि आत्मघाती ड्रोन को बनाने में डिफेंस कॉरिडोर के जरिए जो फंडिंग मिली है, वह हमारे लिए सबसे अहम है। वीयू डायनमिक्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में आईआईटी कानपुर भी हितधारक है।