कानपुर। तिलहनी फसलों में सरसों का विशेष स्थान है। इस मौसम में माहू कीट या चेपा का सरसों की फसल में आक्रमण अधिक होता है। कीट के हमले से नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड घोल या नीम के तेल को तरल साबुन के साथ छिड़काव करना चाहिए। यह जानकारी रविवार को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ एसके विश्वास ने दी।
उन्होंने बताया कि आसमान में बादल घिरे रहने से इसका माहू कीट या चेपा का प्रकोप तेजी से होता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 0.03% घोल का छिड़काव करें या फिर जैविक नियंत्रण हेतु फसल में 2% नीम के तेल को तरल साबुन के साथ( 20 मिलीलीटर नीम का तेल + 1 मिलीलीटर तरल साबुन) में मिलाकर छिड़काव करें।
डॉक्टर विश्वास ने रोगों के बारे में बताया कि सरसों की फसल में काला धब्बा रोग भी लगता है। यह सरसों की पत्तियों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनते हैं। जो बाद में तेजी से बढ़ कर काले और बड़े आकार के हो जाते हैं।
उन्होंने बताया कि रोग की अधिकता में बहुत से धब्बे आपस में मिलकर बड़ा रूप ले लेते हैं। फल स्वरुप पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। यह लक्षण फसल में दिखाई देते ही डाइथेन एम-45 का 0.2% घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करें।
विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ खलील खान ने किसानों से अपील की है कि वे अपनी सरसों की फसल की निगरानी अवश्य करते रहें। क्योंकि आसमान में बादल छाए रहने से सरसों फसल में कीट और रोग आने की संभावना बढ़ जाती है। फसल पर रोग या कीट आने पर प्रबंधन करें। जिससे फसल को कीट और रोगों से बचाया जा सके।