November 22, 2024

संवाददाता।
कानपुर। छठ पूजा का आज दूसरा दिन है। वाराणसी, कानपुर, लखनऊ और गोरखपुर समेत पूरे यूपी में महिलाएं खरना का पर्व मना रही है। उन्होंने शाम को सज-धज कर छठ घाट पर जाकर वेदियों के सामने दीप जलाया। भगवान सूर्य और छठी मईया की पूजा की। उसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत करने का संकल्प लिया। घाट से लौटने के बाद गन्ने के रस से पकी चावल की दूध वाली खीर, चावल का पीठा और घी चुपड़ी रोटी खाकर व्रत शुरू किया। रात भर भजन और छठ माता की कथा सुनकर जागरण करेंगी। 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं व्रत का पारण करेंगी। प्रसाद के भोग लगाने की परंपरा को ही लोक भाषा में खरना कहा जाता है। कल यानी 19 नवंबर को महिलाएं कई तरह के फलों की डलिया और सूप सजाएंगी। इसमें 6 मुख्य फल तो छठी मइया को काफी प्रिय होते हैं। जैसे कि डाभ नींबू (आम नींबू से थोड़ा बड़ा), केला, श्रीफल (नारियल), सिंघाड़ा, सुथनी, गन्ना। इन्हें अर्घ्य वाले सूप में सजाया जाता है। इसके बाद सेब, शरीफा, नाशपाती, अन्नानास, रसभरी, शरीफा आदि फलों से डलिया भरी जाएंगी। सूरज ढलने से करीब 3 घंटे पहले महिलाएं घाट की ओर बढ़ने लगेंगी। परिवार के बाकी सदस्य सिर पर फलों की डलिया और अर्घ्य का सूप उठाकर चलेंगे। पगयात्रा के दौरान सूप के ऊपर एक दीया भी हमेशा जलती रहेगी, जिसे घाट पर वेदी तक पहुंचने से पहले बुझना नहीं चाहिए। कुछ लोग हाथ में गन्ना लेकर साथ-साथ चलेंगे। कुछ देर वेदी पर पूजा करने के बाद सूरज ढलने से आधा घंटे पहले महिलाएं नदी या तालाब के जल में उतरेंगी। कानपुर में करीब छह लाख से अधिक लोग छठ पूजा करते हैं। छठ पूजा को लेकर शहर में 15 बड़े घाट और तालाब बनाएं गएं हैं। घाटों को रंग -विरंगी लाइटों से सजाया गया है। भीड़ को देखते हुए जगह-जगह बांस की बल्ली लगाई जा रही है। घाट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। बाजार में सुबह से खरीदारों की भीड़ देखने को मिल रही है। व्रती महिलाएं और उनके परिजन डाला तैयार करने के लिए फल और पूजन सामग्री की खरीदारी कर रहे हैं। सबसे ज्यादा भीड़ बांस से बनी बहंगी, फल और पूजा के सामान की दुकानों पर है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छठ पर्व के अवसर पर प्रदेशवासियों को बधाई दी हैं। उन्होंने कहा कि छठ पर्व लोक आस्था का एक प्रमुख पर्व है। इस पर्व में आत्मिक शुद्धि और निर्मल मन से अस्ताचल और उदीयमान भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। हमारे देश में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की समृद्ध परम्परा व संस्कृति है। प्रकृति के साथ मानव के जुड़ाव का सन्देश देने वाला छठ पर्व इसी समृद्ध परम्परा का जीवन्त उदाहरण है। 

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